२०६ । द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र . यदि आप ऊजड़ गांव के विषय में कुछ लिखेंगे तो भारतमित्र हाजिर है। ट्रवेलर जितना बन गया हो भारतमित्र के लिये भेज दें। ___अवश्य आप अधूरे ग्रंथ को पूरा करें। शरद पर आपने जो लिखा है अति सुन्दर है। नवरात्रि में जो भारतमित्र का अंक निकलेगा वह कवितामय होगा। उसीके लिये शरद् ऋतु की कविता दरकार है। मैं आशा करता हूं कि आप शरद पर कुछ और भी लिखेंगे। कृपाकरके एक कविता यदि बादलों को सम्बोधन करके लिखी जावे तो उत्तम हो। अकाल पड़ गया है, मेष से प्रार्थना की जावे कि तुम रक्षा करो। पन्नन लाल की पुस्तक ईश्वर ने चाहा तो फिर न छपेगी। आपके अनुत्साह ही का कारण है कि आपकी कविता की चोरी हुई। अनुत्साह ने आपको गुम नाम . कर दिया। गुमनाम का माल हर कोई चुरा सकता है। जरा मैदान में आइये देखें फिर कोई कैसे आपका माल चुराता है। यदि पन्नन के मित्र या पुत्र वैसा करेंगे तो क्या आपके पुत्र मित्र न रहेंगे जो उनके दांतं तोड़ दें। वास्तव में बड़ा ही गन्दा काम पन्नन ने किया। परन्तु हम लोग पीछा थोड़ा ही छोड़ेंगे। और सब कुशल है। आपकी कृपा के लिये बहुत धन्यवाद है। भवदीय दास बालमुकुन्द गुप्त १ (५) ॥श्रीं। कलकत्ता १७-९-८९ पूज्यवर प्रणाम दूसरा अंक आज दो कालम में गया है, साथ ही 'श्रान्त पथिक' भी है। कापी मैंने ही देखी थी, तथापि यदि कुछ भूल रही हो तो क्षमा करेंगे। पन्नन लाल बड़ा बेहया है। फिर एक पत्र भेजा है। ऐसे का क्या किया जाय। अब भी उसे अपने किये का पछतावा नहीं हैं! . . .. आज “साधु" भेजता हूँ। "शरद" पर आपने "हिन्दोस्तान' में जो लिखा था, अब उसका मिलना कठिन है। तथापि मैंने एक कार्ड लिखा है। . ___"भारतमित्र" शनीवार की रात को छपता है और आपका "धनविनय" आज रविवार को आया। इस समय “भारतमित्र" डाक में जा रहा है। लाचार
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