पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२१

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बालमुकुन्द गुप्त जी के पत्र पं० श्रीधर पाठक जी के नाम २०७ अगली बार छपेगा। कृपाकर के भादों भी भेज दें, दोनों साथ छपेगा। वर्षा पर इस सप्ताह में भी कुछ लिखने लगा था। पर अकेला रहने से अवकाश न मिला, जो लिखा था, उसीकी असल कापी भेज देता हूँ। - "घनविनय" अति सुन्दर हुआ है। मैं आशा. करता हूँ कि आपके द्वारा मेरी सारी इच्छायें पूरी होंगी। आपकी कृपा का मैं कहां तक धन्यवाद करूं। नागरी प्रचारिणी के विषय में जो लिखा है सो भी अगली वार। मेरी राय साथ होगी। ____ कविता सदा चौड़े कालम में रहेगी आपकी राय मंजूर। आज लम्बे लेड बनाने का आर्डर दिया जाता है। क्योंकि इस समय दो लेड लगाकर चौड़ा कालम बनाना पड़ता है। दास बालमुकुन्द गुप्त आपने जो नया पता लिखा था वह खो गया। फिर लिखिए। . ॥श्री॥ Guriani (Bhiwani) २८-३-००० पूज्यवर प्रणाम आपका २१ मार्च का कृपापत्र आया समाचार जाना। उर्दू और हिंदी एक होने पर भी दो हैं। बहुत शब्द हिंदी के उर्दू में प्रयोग नहीं होते। गडरिये वाली "नज्म" एक तरह की खड़ी हिंदी है। मेरा कथन यह है कि हिंदी का रस उसमें आया नहीं और उर्दू भी वह नहीं। इससे चाहें तो उसे हिंदी कर लें और चाहे उर्दू । यदि उसी तरह रखें तो भी हर्ज नहीं। परन्तु वह एक्य विलक्षण ही हो जावेगा। . हेमन्त को सुदर्शन ने शुष्क कहा सोबेजा है। कविता के सुन्दर होने में शक नहीं। केवल इस वर्ष के हेमन्त की दशा दूसरी थी, उसमें कवि का क्या दोष है ? आपने लिखा सो अच्छा ही किया। __ आप जो ही कृपा करके लिखें या भेजेंगे सो ही अधिक करके माना जावेगा। . २१ को कलकत्ते से चलकर में लड़के का विवाह करने घर आया हूँ। बैसाख