पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२२

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२०८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र बदी १ को विवाह है। अब मैं आपसे बहुत निकट हूँ। लौटते दर्शन करूंगा। द्विवेदी जी के दर्शन भी होंगे तो बड़ा ही लाभ होगा। भवदीय बालमुकुन्द गुप्त (७) मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट कलकत्ता, १४ मार्च १९०० "पूज्यवर प्रणाम आपका १० मार्च का पत्र मिला। आपके उर्दू काव्य का तर्जुमा बुरा नहीं है। परन्तु जिस भाषा में आपका वह पद्य है, वह उर्दू नहीं है। और न उसमें उर्दू कविता का ही कोई गुण है। यदि आप किसी उर्दू कवि को अपनी कविता दिखा • लें तो मेरे कथन की यथार्थता जान सकते हैं। मैं जोर से इसलिए कहता हूँ कि मैंने 'उर्दू पढ़ी है सीखी है और हिंदी से मैं उर्दू ही अधिक जानता हूँ। इसके सिवाय उर्दू कविता को भी मैंने कई साल देखा पढ़ा है। स्वयं भी उद् कविता की है। मैं आपको 'एक बार फिर सलाह देता हूँ कि आप उसे हिंदी में ही लिखिये और यदि उर्दू ही 'में छपवाइये तो मेरे पास भी एक कापी अवश्य भेज देना। "श्रान्त पथिक" और ....जी की कविता तथा वह चुटकले आज की डाक से मिलते तो अच्छा होता। होली की बाबत आपका जैसा कुछ खयाल है सो ठीक ही है। परन्तु जैसी आपको उससे नफरत है वैसी ही उससे मुझे मुहब्बत है। शायद यह इस कारण कि वैश्य और शूद्र में दस आने आठ आने ही का फर्क है। गीता में कृष्ण जी ने स्त्रियों 'वैश्यों और शूद्रों को एक ही पलड़े में तोला है। शायद बहुत छोटी जाति होने से ही होली का मेरे जी में इतना प्यार है। हाँ, आज आप का एक पत्र सुदर्शन के लेख के विषय में आया। छापने को दिया गया। इसी सप्ताह छपेगा। परन्तु सुदर्शन ने आपके काव्य की बड़ी प्रशंसा की है और गुनवत हेमन्त की भी निन्दा नहीं की है। कुछ दोष नहीं दिखाया है। वह केवल 'यह दिखाता है कि इस साल न मूली थी न मटर था न हेमन्त में पैदा होने वाली कोई वस्तु थी। इससे यदि कुछ उस लेख में सामयिकता होती तो अच्छा था। जिस प्रकार कि आपके घनविनय में है। और भी एक बात है कि बहुत लोगों की किसी काव्य के विषय में बहुत रायें हो सकती है। अच्छी भी बुरी भी। यदि किसी कवि