पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२९

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२१५ पं० बालकृष्ण भट्ट के पत्र पं० श्रीधर पाठक जी के नाम को अस नर जग माहि-कवि रसना जेहि ना रुचे। जुग जुग जिओ असीस ईस की तुम पै आवै। परम छीन गुन हीन बूढ़ यश तुम्हारो गावै॥ बालकृष्ण काशी ११-४-१२ पं० श्रीधर पाठक जी को प्रणतयः कविवर श्रीधर क्यों न कहाँय जिनकी रची कितबिया बहुत एक आँय- सरस रसीली कविता पाय- रूखा को अस जेहि नहिं भाय- भट्ट उजड का देहि हैं राय- बूढ़ अकिल सब दिहिन गंवाय- श्री जार्ज भूप की महिमा गान- करि हैं अब हमहूं लै तान- धन्यवाद कहि बारंबार-- पठवहुँ स्वीकृति पत्र उदार। बालबुद्धि बालकृष्ण ३१-१-१२ पं० श्रीधर पाठक जी को