पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२३२

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२१८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (२) मिरजापुर २५-११-०५ 'प्रिय पाठक जी ____ कृपा कार्ड पाया। आपकी आशा के लिये धन्यवाद। प्रियवर, आजकल मेरे ऊपर ईश्वर की अथवा शनैश्चर की बुरी दृष्टि है। एक के उपरान्त दूसरी, दूसरी के उपरान्त तीसरी विपत्ति में आ फंसता हूँ। सुनिये, मैं काशी जाने की पूरी तैयारी कर चुका था परन्तु बीच में मेरे घर ही में एक विलक्षण षड़चक्र रचा गया? हरि- श्चन्द्र का गौना ६ या सात दिन में आने वाला है। मेरे पिता जी इधर कई दिनों से दौरे पर हैं। इसी बीच में मेरी विमाता जी को भी भयंकर मूर्ति धारण करने को सूझी। ४००J का जेवर गायब करके कह दिया कि मेरे पास ही से घर में से चोरी हो गया। वे जेवर प्रायः वही थे जो हरिश्चन्द्र के विवाह में मिले थे। आप जानते होंगे कि ऐसी कार्रवाइयां दो बार वह और भी कर चुकी है। मेरे पिता जी को खबर दी जा चुकी है, आज वह आने वाले हैं। जब तक वे न आ जायं मेरा यहां से हटना उचित नहीं। बाबू श्यामसुन्दरदास को भी मैंने टेलीग्राम दे दिया है। आपने लिखा कि "मारे लज्जा के माथा ऊंचा नहीं होता।" प्रियवर, थोड़े दिन माथा नीचा ही किए रहिए, यदि ईश्वर की इच्छा होगी तो वह ऊंचा हो ही जायगा। (मेरी कायरता का क्या परिणाम आपको उठाना पड़ा स्पष्ट लिखिये, मुझे बड़ा दुःख है) आपने लिखा कि बाबू श्यामसुन्दरदास को बुरा होना पड़ा। यह बात मेरी समझ में नहीं आती। किससे बुरा होना पड़ा? क्या सारे संसार से ? क्या संसार ही मेरे विरुद्ध है। महाबीरप्रसाद द्विवेदी से वे बुरे हुए तो कोई नई बात नहीं हुई। रहे कोटाधीश' वे द्विवेदी के उपासक ही ठहरे। उनके बुरा होने में बाबू .श्यामसुन्दरदास ऐसे धीर मनुष्य को दुःख मानना न चाहिए। हां, उनके अनुरोध पालन में मैंने बिलंब किया इसका अवश्य उन्हें दुःख होगा। इस विषय में मैं और आपसे क्या कहूँ, मैं काशी जाने के लिये तैयार बैठा हूँ। केवल पिता जी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। आज वे आने वाले हैं। आप कहते है कि तुमने अपने आगे आने वालों के.मार्ग में कंटक बिछा दिया। प्रियवर, मुझे स्वप्न में भी यह विश्वास नहीं हो सकता कि आप ऐसे सुहृद् और स्नेही मित्र मेरे निकट आने में उन कंटकों की पर- १. श्री काशीप्रसाद जायसवाल का घर कोट पर था।' .