पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२३३

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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पत्र केदारनाथ पाठक जी के नाम २१९ वाह करेंगे। वे उन कंटकों का मर्दन करेंगे, उन्हें पददलित करेंगे। आपको मेरे ऊपर रुष्ट न होना चाहिए, दया करनी चाहिए। मेरी दशा की ओर ध्यान देना चाहिए। चारो ओर बवंडर चल रहा है, हृदय डांवाडोल है। आपका किंकर्तव्यविमूढ़ रामचन्द्र शुक्ल (३) रमईपट्टी, मिरजापुर २२ अगस्त, ०६ प्रिय पाठक जी प्रणाम ___कृपाकार्ड मिला। चित्त प्रसन्न हुआ। मैं इधर कई आपत्तियों से बराबर घिरा रहा। मेरे घर में कालरा हो गया था। मैं स्वयं बराबर बीमार रहा। अच्छे होने की कम आशा थी। एक लड़का भी दो महीने का होकर मर गया। सारांश यह कि 'जो जो उपद्रव चाहिए सब इसी डेढ़ महीने के बीच हो गए। खैर अब से भी ईश्वर अनुग्रह करे। आप पत्र का उत्तर न पाने से अवश्य रुष्ट हुए होंगे। पर अब आपको दया करनी चाहिए। मेरे ऊपर वैसी ही कृपा बनाये रहिये, यही प्रार्थना है। आपका यहां से चला जाना मुझे बहुत अखर रहा है। ____कोटाधीश विलायत में वैरिस्टरी भी पढ़ेंगे और व्यापार भी संभालेंगे। बेंक- टेश्वर समाचार में "हिन्दी लेखक का विलायत गमन" देखा। यह गमन समय में आप लिखवाते गए हैं। "पिंकाट" की जीवनी यदि "बंगवासी" में मिल जाय तो बहुत अच्छी बात है। बिलायत से चिट्ठी का जबाव जो आपके पास आया है, कृपा करके उसकी नकलं मेरे पास भेज दीजिये। आपके यहां न रहने से मेरा कुछ भी हाथ पैर नही चलता है। किन्तु मुझे दृढ़ आशा है कि आप मुझे वहां से भी उसकाते रहेंगे। यदि आप जीवनी वहां से भेज दें तो मैं हाथ लगा दूं। देखिएगा, कृपा बनाए रहिएगा। पत्र बराबर देते रहिए। अब में भी स्वस्थ हो गया हूँ, मुझसे भी त्रुटि न होगी। आप अपने आने के विषय में अवश्य लिखिए। आपको ऐसी प्रतिज्ञा न करनी