पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/३३

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'१६ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ___ ऐसे मैनेजरों का देशी रियासतों में न होना ही अच्छा है। श्रीमान् ने यह काम जो अपने कनिष्ठ को देना चाहा है, वह बहुत अच्छा किया है। और सब प्रकार कुशल है। कृपा बनाए रखिए। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी कानपुर १२-५-०५ प्रिय पंडित जी कृपापत्र आया। हमारे घर के आदमी हमारे यहाँ कानपुर नहीं आए, वहीं काल की डाढ़ के बीच पड़े हैं। एक हमारी भांजी के देवी निकली हैं, इसीसे वे न बाहर रहने गए न यहाँ आए। हमने उनकी फिकर अब छोड़ दी है। यद्भवतु तद्भवतु। ___ आपकी चिट्ठी को पढ़कर असीम खेद हुआ। पर संतोष इतना ही है कि आप अपने कर्तव्य से नहीं चूके। प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोपि पुंसां मलिनी 'भवन्ति। ___ कोई क्या कर सकता है। पर जब समझदार आदमी अपने कर्तव्य से भ्रष्ट होते हैं तब कुछ करते नहीं बन पड़ता। आज कल हमारे इस प्रकार के स्वदेशियों की जो दशा है, उसे देखकर दया और घृणा दोनों का आविर्भाव होता है। ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे। किमधिकेन । श्रीमदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (२०) कानपुर २-४-०६ प्रिय महाशय प्रणामानन्तर विदित हो कि कल कलकत्ते से एक मैशीन हमारे पास आ गई और अच्छी हालत में वह हमको मिल गई। इस कृपा के लिए हम श्रीमान के चिरकृतज्ञ रहेंगे। क्षीमान की उदारता और कृपा के सदभाव तो सदैव ही से