पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/३९

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२२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र . इसलिए कुछ दिनों के लिए हम यहां आम खाने चले आए हैं। ७ अगस्त तक कान- पुर वापस जायंगे। आपका पत्र कल मिला। बहुत अच्छा, उत्तरार्द्ध आ जाने पर हम आपकी प्रार्थना प्रकाशित करना आरम्भ करेंगे। माफ कीजिए, आपके पहले २५ पद्य जितने सरस है उतने दूसरे २५ नहीं हैं। व्यग्रता में शायद इनको आपने लिखा होगा । आपके घर की बीमारी का हाल सुनकर रंज हुआ। ईश्वर आपके कुटुम्बियों को सदैव नीरोग रक्खे। ___ प्रसन्नता और अप्रसन्नता के विषय में आपने जो लिखा उसका उत्तर हम इस पत्र में देना उचित नहीं समझते। हम सिर्फ आपको (१) 'दानार्थिनी मधुकरा यदि कर्णतालै:'--अथवा-(२) 'अस्मान् विचित्र वपुषश्चिरपृष्टलग्नान्' का स्मरण दिलाकर ही चुप रहते हैं। हमारे पास एक ग्रामोफोन है। पर उसके रेकार्ड्स (चूड़ियां) अच्छी नहीं। उनके गीत हमें पसंद नहीं। यदि आप किसी ऐसी सड़क पर घूमने जायं जहां ग्रामो- फोन की कोई बड़ी दूकान हो तो दो-चार रेकार्ड सुनिएगा और जो आपको पसंद हों उनका नाम, नम्बर और यदि संभव हो तो पूरा गीत हमें लिखिएगा तो हम मंगा लेंगे। रेकार्ड्स हिंदी, उर्दू या संस्कृत के हों, ७ इंचवाले। उर्दू में थियेटर की कोई अच्छी अच्छी गजलें हो तो हम ले लेंगे। संस्कृत में (१) 'बाल्ये दुःखातिरेकात्”, (२) 'वेदानुदरते', (३) 'नमस्ते पतितजनभयहारी" हमारे पास है। अधिक कष्ट न उठाएगा। बड़ी जरूरत नहीं है। श्रीमदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (३०) कानपुर ७-१२-०६ प्रिय पंडित जी . . .२७ का पत्र मिला। हम छतरपुर चले गए थे। इससे उत्तर में विलंब हुआ। 'माघवनी' की बात से बड़ा कुतूहल हुआ। ___आपने खूब कहा। मेडल हमारे लिए सर्वथा अयोग्य बात है। हम दिन भर यों ही कलम रगड़ा करते हैं। हम श्रीमान् की कृपा ही को हजार मेडल समझते है। मेडल देने का अभिप्राय शायद श्रीमान् का यह है कि लेखकों को उत्साह