पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/४३

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (३५) जुही, कानपुर २७-११-०७ प्रियवर पंडित जी ई० आई० आर० में हड़ताल होने के कारण आपका १८ नवम्बर का कृपा-पत्र हमें २५ को मिला। पढ़कर कृतार्थ हुए। स्वाधीनता की एक कापी आज हम आपको भेजते हैं। कृपा करके पहुंच लिखिएगा। यदि आपको इसमें कोई ऐसी त्रुटियां मिले जिनके कारण भावार्थ समझने में बाधा आती हो तो कृपा करके, सूचित कीजिएगा। इसका दूसरा संस्करण भी निकलनेवाला है, उसमें उनका संशोधन हो जायगा। पहले संस्करण की ५०० कापियों में, सप्रेजी लिखते हैं थोड़ी ही रह गई है। इससे १००० कापियां और इसकी छापी जायंगी। श्रीमान के नाम का संयोग इसके साथ हो जाने से बुरी चीज भी अच्छी हो गई जान पड़ती है। श्रीमान को इसकी खबर दे दीजिएगा। आपकी इस अनन्य कृपा के लिए हम चिरऋणी रहेंगे। जहां मंगलमय 'जनार्दन' हैं वहां विघ्न बाधाओं का नाम न लीजिए। आपने अपने यहां की विवाह-प्रथा की जो बातें लिखीं वे हमारे लिए बिलकुल ही नई हैं। परन्तु इस प्रथा के कारण बहुत कुछ असुविधाएँ जरूर होती होंगी। इसमें परिवर्तन दरकार मालूम होता है। कन्या के लिए वर बहुत देख सुनकर और अनेक आगे-पीछे की बातों का विचार करके निश्चित करना चाहिए। छोटी चिट्ठी लिखने के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। हमारा 'सम्पत्तिशास्त्र' समाप्तप्राय है। तीन चार परिच्छेद लिखना बाकी है। उसी में हम अपना अधिक समय लगाते हैं। विनीत महावीरप्रसाद (३६) दौलतपुर, डाकघर, भोजपुर, रायबरेली ३०-६-०८ प्रिय पंडित जी १९ ता० का कृपापत्र मिला । आजकल हम अपने मकान पर हैं। अभी महीना पंद्रह रोज यहीं रहने का विचार है।