पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/५९

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र बिना आपके अंकुश लगाये काम न होगा । वे चाहें तो बात की बात में मेरी कार्य- पूर्ति कर सकते हैं। १० हजार अभी उनके कुटुम्ब ने परोपकार में दिये हैं। मेरे लिये तो इसके दशांश से भी कम का प्रबन्ध करना है। इस काम को मैं आप ही पर छोड़ता हूँ। श्रीयुत पंडित कामताप्रसाद जी गुरू "अध्यापक ट्रेनिंग कालेज" भावाक गढ़ा-फाटक, जबलपुर म०प्र० द्विवेदी दौलतपुर, रायबरेली ६-८-२७ नमोनमः २ अगस्त का पत्र मिला। बहुत कुछ सान्त्वना हुई। सेठ साहब की चित्तवृत्ति पहले कुछ और तरह की थी अब कुछ और तरह की हो गई है। पहले उनमें मातृ- भाषा भक्ति प्रधान थी, अब देशभक्ति। यदि आप इस मामले में दिलचस्पी न दिखावेंगे तो कुछ होने का नहीं। सेठ साहब का परिचय और गुणगान आपही ने कराया था। अब आप ही मेरी सहायता कीजिये। इनके लिए दो चार सौ रुपये कोई चीज नहीं। मेरे लिये बहुत कुछ है। कृपा करके जैसे हो वैसे यह काम करा दीजिए। मुझे अब आपही का भरोसा है । एक हफ्ते बाद लिखिएगा क्या हुआ। पंडित कामताप्रसाद जी गुरू आपका गढ़ा-फाटक, जबलपुर म०प्र० द्विवेदी दौलतपुर, रायबरेली १३-८-२७ प्रणाम बाबू गोविन्ददास का जो जवाब आया वह बिलकुल ही निराशाजनक है। हिसाब जो उन्होंने लिखा है वह भी गलत है। मैंने जो चिट्ठी आज उनको भेज़ी है उसकी नकल. इसी लिफाफे के अन्दर आपके अवलोकनार्थ भेजता हूँ।