पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/६५

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५० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र कानफिडेंसियल जुही-कलां, कानपुर ___७-११-२३ आशीष परसों दिन के १२ बजे बाबू वासुदेव पधारे। परसों और कल कुछ काम किया है। चार पांच सौ पुस्तकें निकाली होंगी। अभी एक अलमारी भी खाली नहीं हुई। कोई ३ बक्स भर गए। आज भी शायद आते होंगे और काम करें। रात की गाड़ी से अपने घर दीवाली करने जाने वाले हैं। ३ दिन बाद आने को कहते हैं। मैं १५ या १६ ता० को चला जाऊँगा । लौटकर आयें तो शायद ४ रोज और काम कर सकें। पुस्तक सूची भी सटपट बना रहे हैं। मेरे चले जाने पर काम बंद हो जाएगा। लौटकर फिर आना पड़ेगा। लाचारी है, शायद फागुन में लौट सकूँगा। तब फिर आदमी भेजिएगा। अभी तक महत्वहीन छोटी से छोटी पुस्तकें निकाली हैं। राय कृष्णदास को किसी ने खबर कर दी। वे कला और प्रत्नतत्व की किताबें अपनी कलाशाला में रखने को मांग रहे हैं। पहले भी मांगी थीं। लिख दिया था कि उन्हें मैं अभी पास ही रखना चाहता हूँ। कला की तो कोई पुस्तकें पास नहीं, Drfenl of Wrch की सालाना रिपोर्ट कुछ हैं। कुछ उनके Supdh की भी हैं। यहाँ एक ही साथ है, घर पर बाकी सब हैं। रायसाहब को क्या जवाब दूं। आपके यहां तो Drfenl की रिपोर्ट आती ही होंगी। संग्रह बंट जाना अच्छा नहीं। पर इनकी इच्छा भंग करने को जी भी नहीं चाहता। कहिए तो Drfenl की रिपोर्ट देने का वचन दे दूं। श्यामसुन्दरदास आपका म०प्र० द्विवेदी जुही-कलां, कानपुर ११-११-२३ शुभाशीष - ७ का पोस्टकार्ड मिल गया। पुस्तकें मिल गई हों तो पहँच लिखिए। मुझे चिता है। .