पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (६) जुही-कलां, कानपुर १२-११-२३ महाशय ४ रोज की छुट्टी लेकर और दीवाली मनाकर बाबू वासुदेवसहाय आज सुबह ७-३० बजे आए। २३ घंटे काम करके फिर कहीं चले गए हैं। मालूम नहीं कहां? शायद खाना खाने गए होंगे। सूचनार्थ निवेदन है। श्रीयुत मंत्री, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी. भवदीय म०प्र० द्विवेदी (७). जुही-कलां, कानपुर १४-११-२३ आशीष ____ गोपनीय चिट्ठी का जवाब मिला। ३ दिन से मैं बहुत तंग हूं। नींद बिल- कुल नहीं पड़ी। नरक भोग रहा हूँ पर किसी तरह जवाब दिये देता हूं। मेरे जिले रायबरेली में बेली पाठशाला का एक पुस्तकालय है। कई तअल्लुके- दार पीछे पड़े रहे। मैंने उनको पुस्तकें नहीं दी। यहां कानपुर में छोटेलाल गया प्रसाद ट्रस्ट है। कोई १ लाख की इमारत बनी है । पुस्तकालय उसमें शीघ्र ही खुलेगा। अनेक बड़े बड़े आदमी चाहते थे कि मैं वहीं अपना संग्रह रख दूँ। मैंने नहीं माना। बहुत लोग नाराज हो गए। सभा का मेरा तअल्लुक पुराना है। उसीको मैंने पात्र समझा वह चाहे रखे, चाहे नष्ट कर दे। मैं बांट नहीं देना चाहता। पर रायकृष्णदास का प्रणय भंग भी नहीं करना चाहता। उन्होंने बहुत पहले से कुछ पुस्तकें मांग रखी हैं। एक archeological पुस्तक मैंने विवश होकर पर साल भेजी भी थी। उन्हें मैं Director Gnl. की amunal Reports कुछ भेज दूंगा। पर अभी मैं उनको पास ही रखूगा दो तीन यहां हैं चार पांच गांव पर। मेरे पास भी इधर ही कुछ सालों से आने लगी हैं, गवर्नमेंट आफ इंडिया से बहुत लड़ने पर।