पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/७९

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श्री पं० श्रीराम शर्मा जी के नाम (१) . दौलतपुर (रायबरेली) ४-९-३२ चिरंजीवी भूयाः १ सितम्बर की चिट्ठी मिली। मुझे लिखने में कष्ट होता है। इससे संक्षेप ही से काम निकालूंगा। लेकिन मेरे थोड़े लेख को बहुत समझना। मैं पहले ही आपकी तरफ आकृष्ट था। आपकी इस चिट्ठी ने मुझे और भी ‘आपके नजदीक खींच लिया, विशेषकर आपके उस कार्य ने, जिसने उस मुदम्मिग डिप्टी को लगे हाथ सजा दे दी। मैं रेलवे में १५०) तनख्वाह ५०) अलौंस = २००) पाता था। एक मेरे साहब ने मुझसे अपने मातहत क्लर्कों पर जुल्म कराना चाहा। 'मैंने इनकार कर दिया। वह बोला-तुम्हारी जगह पर दूसरा आदमी रखूगा। मैंने तत्क्षण ही इस्तीफा लिखकर उसकी मेजपर फेंक दिया और घर चला आया। ‘फिर मनाने-पथाने पर भी इस्तीफा वापस न लिया। हाँ, कायदे के मुताबिक २९ 'दिन मुझे और काम करना पड़ा। मेरा अक्खड़पना आपके मुकाबले में कुछ भी नहीं। पर मेरा स्वभाव आपके स्वभाव से कुछ-कुछ मिलता जरूर है। चतुर्वेदी जी को गणेश का जीवन-चरित लिखने दीजिए। वे अच्छा ही लिखेंगे। आप रहने दीजिए। - आप जहाँ हैं, अब वहीं रहिए। आपके वार्ड के बालिग होने पर आपको और काम मिल सकेगा।पर समय नष्ट न कीजिए। अपनी प्रतिभा का सदुपयोग कीजिए। कुछ न कुछ रोज लिखिए। __ मेरा कौटुम्बिक जीवन दुःखदायी है। घबरा रहा हूँ। दशहरे के बाद कुछ दिन के लिए बाहर जाने का विचार है। बाबू कालिदास कपूर, हेड मास्टर कालीचरण हाई स्कूल, लखनऊ ने मुझे लाने के लिए मोटर भेजने का प्रबंध किया है। यहाँ से १४ मील पर एक जगह बीघापुर है वहां मैं पहुंच जाऊंगा। वहीं से मोटर पर लखनऊ आऊंगा। आपके साथ भी दो-चार दिन रहूंगा। न मिले हो तो आप कपूर जी से मिलिए। बड़े ही सज्जन हैं। यों आपका घर है, जब चाहें यहाँ आ सकते हैं।