पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/८१

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ( ३) . दौलतपुर (रायबरेली) २०-१-३५ शुभाशिषःसंतु चिट्ठी मिली। शास्त्री जी का लेख पढ़कर मैं तो उछल पड़ा। मेरे मुर्दादिल में जान आ गई। मुद्दतों बाद ऐसी खरी बातें सनने को मिलीं। मेरी तरफ से शास्त्री जी को थैक्स दे दीजिए। साल में एक-आध दफे तो भूले-भटकों को राह दिखा दिया करें। एक दफे अनन्त की खोज में मरने-खपने वालों की भी खबर ले लें तो बड़ी कृपा हो। मेरी आंखों में मोतिया-बिंद शुरू हुआ है, डाक्टरों की बताई एक दवा (सुकुस सेनेरिआ मैरिटिमा) एक महीने से डालता हूँ। फायदा नहीं। पांच वर्ष पहले मेरी शिकायत इससे दूर हो गई थी। शास्त्री जी से कोई नुसखा पूछकर मुझे लिखिए या उनसे लेकर कोई दवा दीजिए। अगर आपका रोग औषधोपचार आदि से दबा रहे, तो आपरेशन न करा- इए। मेरी भी यही राय है। शुभैषी महावीरप्रसाद द्विवेदी १. 'विशाल भारत' में साहित्याचार्य पं० शालग्राम शास्त्री का सन् १९३४ का 'बौड़मपन' शीर्षक एक लेख निकला था । लेख में निराला जी के एक लेख की आलोचना थी श्री. दुलारेलाल जी के दोहों को लेकर । लेख महत्वपूर्ण और विवादग्रस्त था, इसलिए आचार्य द्विवेदी जी के पास उस लेख की कतरन 'विशाल भारत' निकलने से पहले ही भेजी गई थी। उस पर द्विवेदी जी की यह प्रतिकृया है।