पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/१५

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अब्बा, बड़े शानदार आदमी हैं। बड़े हौसलेमन्द हैं, बड़े दिलवाले हैं। वे अपनी नवाबी शान को नहीं छोड़ सकते। खानदानी इज़्ज़त का ख्याल भी उन्हें बहुत है, इसी से उन्होंने मेरे इस मुकाम को नापसन्द किया और मेरी शादी नवाब वज़ीर अली खाँ बहादुर से तय कर दी। तब मेरा फर्ज़ है कि उनकी बात पर हर्फ न लगाऊँ मेरी ज़रा-सी ज़िन्दगी तबाह हो जाए तो परवाह नहीं, लेकिन मैं उनकी मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती।"

"लेकिन इस तरह शादी करना तो सरासर एक-दूसरे को धोखा देना है। क्या आप नवाब वज़ीर अली खाँ बहादुर पर यह राज़ जाहिर कर देंगी?"

"नहीं कर सकती।"

"और वह प्रोफेसर?"

"नहीं करेंगे।"

"लेकिन बड़े नवाब आपके आराम और तकलीफ का कुछ ख्याल ही नहीं करेंगे? वे अगर आपकी शादी प्रोफेसर साहब से कर दें तो कोई झगड़ा-झंझट ही नहीं है।"

“ये सब बातें तो हो चुकीं। घर में न कोई दूसरी औरत है न मर्द, सिर्फ मैं और बड़े अब्बा हैं। वे अपनी खानदानी इज़्ज़त के बाद मुझी को प्यार करते हैं और मैं अपने से ज़्यादा उन्हें प्यार करती हूँ। इसी से मैंने जब मुँह खोलकर अपनी दिक्कत उनके सामने पेश की तो वे गुस्सा नहीं हुए, उन्होंने कहा—तब तो बानू, तेरी शादी प्रोफेसर से ही होनी चाहिए, मेरी बात जाए तो जाए। —लेकिन मैंने यह मंजूर नहीं किया और कहा—यह नहीं होगा बड़े आपकी बात और खानदानी इज़्ज़त पहले है। मैंने पहले इसका कुछ खयाल नहीं किया था, लेकिन अब तो आप जैसा चाहेंगे। वैसा ही होगा।"

डाक्टर के हृदय में कहीं जाकर दर्द उठा। उसने आँख उठाकर बानू के लाल-लाल फूले हुए नेत्रों को देखकर कहा, “तो फिर, आपकी ये लाल-लाल फूली हुई आँखें..."

“अपने लिए नहीं, उनके लिए, जिनकी ज़िन्दगी मैंने सूनी कर दी, लेकिन फर्ज़ कीजिए, मैं मर ही जाती; तब भी तो उन्हें सब्र करना पड़ता।"

एकाएक डाक्टर के मन में एक बात उठी। उसने कहा:

"तब तो नवाब जो काम मेरे सुपुर्द करना चाहते हैं, प्रोफेसर के सुपुर्द भी कर सकते हैं। यह ज़्यादा ठीक भी रहेगा।"

"बड़े अब्बा ऐसा नहीं कर सकते। मैं कह चुकी हूँ। फिर मैं भी इसी में भलाई समझती हूँ कि मुझसे और बच्चे से उनका कोई ताल्लुक ही न रहे।'

"सिर्फ बड़े नवाब साहब की एक सनक के लिए आप कई-कई ज़िन्दगी बर्बाद कर देना पसन्द करती हैं?"

“ऐसा तो दुनिया में होता ही है डाक्टर! लड़ाई में लाखों जवान जो कट मरते हैं, तो कुछ अपने किसी काम से नहीं—अपने जनरल के हुक्म से, मालिक के नाम और काम के लिए। यों एक-एक जान की कीमत लेकर हम कहाँ तक दुनिया में आगे बढ़ सकते हैं!"

"आपके विचार पाक हैं, आदर्श ऊँचे हैं, मैं उन्हें पसन्द भले ही न करूँ लेकिन मैं आपकी इज़्ज़त के लिए—आप जैसा कहेंगी—करने को राज़ी हूँ।"

"लेकिन आपकी बीवी?"

“वह तो नवाब साहब ने अपने ज़िम्मे ली है।"