पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१०६

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उत्पत्ति [४५ पन्चे यमुफ हूं जिसे तुम ने मिस्र में बेचा ॥ ५। सो इस लिये कि तुम ने मुझे यहां बेंचा उदाम न होगी और व्याकुन्न मत होओ क्योंकि ईश्रर न तुम से आगे मुझे प्राण बचाने को भेजा। ६। क्योंकि दो बरस से भमि पर अकाल है और अभी और पांच बरम लोबाना लबना न होगा। ७ ॥ तुम्हारे वंश की पृथिवी पर रक्षा करने को और बड़े उड़ार से तुम्हारे प्राण बचाने को ईश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे भेजा ॥ ८ । सेा अब तुम ने नहीं परन्तु ईश्वर ने मुझे यहां भेजा और उस ने मुझे फिरजन के पिता के तुल्य बनाया और उस के सारे घर का प्रभु और सारे मिस देश का अध्यक्ष बनाया ॥ । फुरती करो और मेरे पिता पाम जाओ और उसे कहियो कि आप का बेटा यूसुफ यों कहता है कि ईश्वर ने मुझे मारे मिस्र का खामी किया मुझ पास चले आइये ठहरिये मत ॥ १० ॥ और आप जन की भूमि में रहियेगा और आप और आप के लड़के और श्राप के लड़कों के लड़के और आप के झंड और जन और जो कुछ आप का है मेरे पास रहेंगे। ११। और यहां मैं आप का पति- पाल करूंगा क्योंकि अब भी अकाल के पांच बरस हैं न हो कि आप और आप का घराना और सब जो आप के हैं कंगाल हो जायं ॥ १२ ॥ और देखो तुम्हारी आँखें और मेरे भाई बिनयमीन की आंखें देखती हैं कि मैं आपही तुम से बोलता हूं। १३। और तुम मेरे पिता से मेरे विभव को जी मिस्र में है और सब कुक की जा तुम ने देखा है चर्चा कौजिया और फुरती करो और मेरे पिता को यहां ले आओर ॥ अपने भाई बिनयमोन के गले लगके रोया और बिनयमीन भी उस के गले लगके राया ॥ १५ । और उस ने अपने सब भाइयों को चूमा और उन से मिल के रोया उस के पीछे उस के भाइयों ने उसी बातें किई॥ १६ । और इस बात की कीर्ति फिरजन के घर में सुनी गई कि यूसुफ के भाई आये हैं और उसे फिरजन और उस के सेवक बहुत आनन्दित हुए । १७। और फिरज़म ने यूसुफ से कहा कि अपने भाइयों से कह कि यह करो अपने पशुन को नादो और कनान देश में जा पहुंचे। १८ । और अपने पिता और अपने घरानों को लेग्रो और मुझ पास आया और मैं तुम्हें मिख देश की अच्छी और