पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१११

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और यमुफ ४७ पर्व की पस्तक । कि मिस्र देश और कनान देश अकाल के मारे झोस गया था ॥ १४ । ने सारे रोकड़ को जो मिस देश और कनान देश में था उम् अन्न की मती जो लोगों ने मोल लिया बटोरा और यम्फ उम् रोकड़ को फिरज़म के घर में लाया ॥ १५ । और जब मिस देश और कनान देश में रोकड़ हो चुका तो सारे मिसियों ने प्राके यूसुफ से कहा कि हमें रोटी दौजिये कि आप के होते हुए हम क्या मरें क्योंकि रोकड़ हो चुका है। १६ । तब यू मुफ ने कहा कि जो रोकड़ न होय तो अपने ढोर देयो मैं तुम्हारे ढोर की मंती दूंगा। १७। वे अपने ढोर यूसुफ के पास लाये और यूसुफ ने उन्हें धोड़ों और झंडों और दारों के चौपाय और गदहों की संतो रोटियां दिई और उस ने उन के ढार को संती उन्हें उम बरस पाला॥ ५८। और जब बुह बरस बीत गया ये दसरे बरस उस पाम आये और उसे कहा कि हम अपने प्रभु से नहीं छिपायेंगे कि हमारा रोकड़ उठ गया हमारे प्रभु ने हमारे दारों को झंड भी लिई से हमारे प्रभु की दृष्टि में हमारे देह और भूमि से अधिक कुछ न वचा॥ १९ । सो हम अपनी भूमि समेत श्राप की आंखें के आगे क्यों नष्ट होघे हमें और हमारी भूमि को रोटी पर मोल लीजिये और हम अपनी भूमि ममेत फिरऊन के दास होंगे और अन्न दीजिये जिसने हम जीव और न मरें जिसने देश उजड़ न जाय ॥ २० । ने मिस्र की सारी भूमि फिरजन के लिये मेलि लिई क्योंकि मिस्त्रियों में से हर एक ने अपना अपना खेत बेचा इस कारण कि अकाल में उन्हें निपट मकेत किया था से वुह भूमि फिरजन की हुई । २१ । रहे लोग सो उस ने उन्हें नगरों में मिस्र के एक सिवाने से दूसरे सिवाने लो भेजा ॥ २२। उस ने केवल याजकों की भूमि मोल न लिई क्योंकि याजकों ने फिरजन से एक भाग पाया था और फिरऊन के दिये हुए भाग से खाते थे इस लिये उन्होंने अपनी भूमि को न बेंचा। २३। तब यूसफ ने लोगों से कहा कि ट्खा मैं ने आज के दिन तुम्हें और तुम्हारी भूमि को फिरजन के लिये मेल लिया है से यह वीज तुम्हारे लिये है खेत में बाओ ॥ २४ । और उस की बढ़ती में ऐसा होगा कि तुम पांचवां भाग फिरजन को देना और चार भाग खेत के बीज और यूसुफ