पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/११८

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उत्पत्ति की पुस्तक [५. पन्न तुम्हारा और कहा तो यूसुफ रोया ॥ १८। और उस के भाई भी गये और उस के आगे गिर पड़े और उन्होंने कहा कि देखिये हम आप के सेवक हैं। १८ । यमुफ ने उन्हें कहा कि मत डरो कि क्या मैं ईश्वर की संतौ हं॥ २० । पर तुम जो हो तुम ने मझ से बुराई करने की इच्छा किई परन्तु ईश्वर ने उसे भलाई कर दिई कि बहुत से लोगों का प्राण बचावे जैसा कि आज है ॥ २१ । इस लिये तुम मत डरो मैं तुम्हारे बालकों का प्रतिपाल करूंगा और उस ने उन्हें धीरज दिया और उन से शांति की बातें कहीं ॥ २२। और यूसुफ और उस के पिता के घराने ने मिस्र में निवास किया और यूसुफ एक मौ दस बरस जीया ॥ २३। और यूसुफ ने दफ़राधम की तीसरी पीढ़ी देखौ धौर मुनरमी के बेटे मनीर के भी लड़के यूमुफ के चुटनों पर जनाये गये ॥ २४ । चौर युसुफ ने अपने भाइयों से कहा कि मैं मरता हूँ और ईश्वर तुम से निश्चय भेंट करेगा और तुम्हें इस देश से बाहर उस देश में जिन के विषय में उस ने अविरहाम और इज़हाक और यअकब मे किरिया खाई थी ले जायगा ॥ २५ । और यूसुफ ने इसराएल के संतानो से यह किरिया लेके कहा कि ईश्वर निश्चय तुम से भेंट करेगा औरर तुम मेरौ हड्डियों को यहां से ते जाइयो॥ २६ । से यूसुफ एक सौ दस बरस का होके मर गया और उन्हों ने उस में सुगंध भरा औरर उसे मिस्र में मंजूषा में रक्वा ।