पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१२

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उत्पमि [१ पर्व फलबंत पेड़ को जो अपनी अपनी भांति के समान फलें जिन के बीज भूमि पर उन में हेायें उगाये और ऐसा हो गया। १२। और भूमि ने घास और सागपात को अपनी अपनी भांति के समान जिन में वीज होवें और फलवंत पेड़ को जिस का बीज उस में होवे उम् की भांति के समान उगाया और ईश्वर ने देखा कि अच्छा है ॥ १.३। और मांझ और बिहान तीसरा दिन हुआ॥ १४ । और ईश्वर ने कहा कि दिन और रान में विभाग करने को खर्ग के आकाश में ज्योति हवि और वे चिह्नां और ऋतुन और दिनों और वर्षों के कारण होवे ॥ १५ । और वे पृथिवी को उजियानी करने को वर्ग के आकाश में ज्योति के लिये हो और ऐसा हो गया॥ १६ । और ईश्वर ने दो बड़ी ज्योति बनाई एक बड़ी ज्योति दिन पर प्रभुता के लिये और उसे छोटी ज्योति रात पर प्रभुता के लिये और तारों को भी॥ १७। और ईश्वर ने उन्हें वर्ग के श्राकाश में रकबा कि प्रथिवी पर रंजियाला करें। १८ । और दिन पर और रात पर प्रभुना करें और उजियाले को अंधियारे से विभाग करें और ईनर ने देखा कि अच्छा है॥ १८ । और सांझ और बिहान चौथा दिन हुआ। २० । और ईश्वर ने कहा कि पानी जीवधारी रंगवैयों की बहुताई से भर जाय और पक्षी एथिबी के ऊपर वर्ग के अाकाश पर उड़ें ॥ २१ । सो ईश्वर ने बड़ी बड़ी मछलियों और हर एक रंगवैये जीवधारी को जिन से पानी भरा है उन की भांति भांति के समान और हर एक पक्षी को उस की भांति के समान बताई से उत्पन्न किया और ईश्वर ने देखा कि अच्छा है ॥ २२। और ईनर ने उन को श्राशीष दे के कहा कि फलमान होओ और बढ़े और समुद्रों के पानियां में भर जायो और पक्षी पृथिवी पर बढ़ें। २३ । और सांझ और विहान पांचवां दिन हुआ। २४। और ईश्वर ने कहा कि एथिवी हर एक जीवधारी को उस की भांति भांति के समान अर्थात् ढोर और रेम- वैये जंतु को और वनले पशु को उस की भांति के समान उपजाये और ऐसा हो गया॥ २५ । और ईश्वर ने बनैले पशु को उस की भांति के के समान और ढोर को उम की भांति के समान और प्रथिवी के हर एक रेंगवैये जंतु को उस की भांति के समान बनाया और ईश्वर ने देखा कि