पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१२०

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यात्रा [२ पन्दै कठिन सेवा से गारा और ईर का कार्य और खन की भांति भांति की सेवा कराके उन के जीवन को कडुअा कर डाला उन की मारी सेवा जो ये कराते थे लेश के साथ थी। १५ । नब मिस्त्र के राजा ने इवरानी जनाई दाइयों को जिनमें एक का नाम सिफरः और दूसरी का नाम फूत्रः था यों कहा ॥ १६ । कि जव इबरानी स्त्री तुम से जनाई दाई का कार्य कराव और तुम उन्हें आसनों पर देखा यदि पुत्र होय तो उसे मार डालो और यदि पुत्री होय तो जीने दो॥ १७॥ परंतु जनाई दाई ईश्वर से डरती थीं और जैसा कि मिस्र के राजा ने उन्हें अाज्ञा किई थी वैसा न किया परंतु पुत्रों को जीता छोड़ा। १८। फिर मिस्र के राजा ने जनाई हाइयों को बुलवाया और उन्हें कहा कि तुम ने ऐसा क्यों किया और पुत्रों को क्या जीता छोड़ा॥ १८। जनाई दाइयों ने फिरज़न से कहा इम कारण कि इबरानी स्त्री मित्र की स्वियों के समान नहीं क्योंकि वे फर- तीली हैं और उम्झे पहिले कि जमाई दाई उन पास पहुंचे बे जम बैठ- २० । दूस लिये ईश्वर ने जनाई दाइयों से सुव्यवहार किया और लोग बढ़ गये और अन्यंन वलचंत हुए ॥ २१। और इस कारण कि जनाई दाई ईश्वर से डरती थीं यां हुआ कि उस ने उन को बसाया । २२। और फिरजन ने अपने समस्त लोगों को आज्ञा किई कि हरएक पुत्र जो उत्पन्न होय तुम उसे नदी में डाल देखो और हरएक पुत्री को जीती छोड़ो॥ २ दूसरा पर्च। और र लावी के घराने के एक मनुष्य ने जाकर लावी की एक पुत्री यहण किई ॥ २ । बुह स्त्री गर्भिणी हुई, और बेटा जनी और उस ने उसे सुन्दर देख के तीन भास ले छिपा रक्खा ॥ ३। और जव अागेको छिपा न सकी तो उस ने सरकंडों का एक टोकरा बनाया और उस पर लासा और राल लगाया और उस बालक को उस में रखा और उस ने उसे नदी के तौर पर माज में रख दिया । ४। और उस की बहिन दूर से खड़ी देखती थी कि उस का क्या होगा॥ ५। तब फिरजन की