पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१३६

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यावा [6 पर्व सारी विपत्ति तेरे मन पर और नेर सेवकों पर और तेरी प्रजा पर डालूंगा कि तू जाने कि समस्त पृथिवी पर मेरे तुल्य कोई नहीं। १५। क्योंकि अब मैं अपना हाथ बढ़ाऊंगा जिमने मैं तुझे और तेरी प्रजा को मरी से मारूं और तू एथिवी पर से नष्ट हो जायगा॥ १६ । और निश्चय मैं ने तुझे इस लिये उठाया है कि अपना पराक्रम तुझ पर दिखाजं और अपना नाम सारे संसार में प्रगट करूं॥ १७। अब लो तू मेरे लोगों पर अहंकार करता जाता है और उन्हें जाने नहीं देता॥ १८। देख मैं कल इसी समय में ऐसे बड़े बड़े बोले बरसाऊंगा जो मिस्र में उम के प्रारंभ से अबला न पड़े थे ॥ १८ । सो अभी भेज और अपने पशु और जो कुछ कि खेत में तेरा है सभा को एकद्वे कर क्योंकि हर एक मनुश्य पर चार पशु पर जो खेत में होगा और घर में नाया न जायगा शोले पड़ेंगे और वे मर जायेंगे ॥ २०॥ जो परमेशर के बचन से डरता था फिरजन के सेवकों में से हर एक ने अपने सेवकों को और अपने पशुन को घर में भगाया ॥ २१। और जिस ने परमेश्वर के बचन को न माना अपने सेवकों और अपने पशुन को खेत में रहने दिया ॥ २२। और परमेश्वर ने मूमा को कहा कि अपना हाथ वर्ग की और बढ़ा जिसने मिस्र के सारे देश में मनुष्य पर और पशु पर और खेत के हर एक साग पात पर जो मिस की भमि में है ओले पड़े। २३। और मूसा ने अपनी छड़ी वर्ग की ओर बढ़ाई और परमेश्वर ने गर्जन और ग्रेले भेजे और भाग भूमि पर चलती थी और ईश्वर ने मिस्र की भूमि पर ओले बरसाये । २४ । सेो निम्न की भूमि पर भोले थे और ओले से आग अति कष्टित मिली हुई थी यहां लांकि मिस्र के समस्त देश में जब से कि बुह देशी हुत्रा था ऐसा न पड़ा था ॥ २५ ॥ और योलों ने मिस के समस्त देश में क्या मनुष्य को और क्या पशु मव को जो खेन में थे मारा और बालों से खेत के सब साग पात मारे गये और खेत के सारे वृक्ष टूट गये ॥ २६ । केवल जश्न की भूमि में जहां इसराएल के संतान थे ओले न पड़े ॥ २७॥ तद फिरजन ने भेजा और मूसा हारून को बुलवाया और उन्हें कहा कि मैं ने इस बार अपराध किया परमेश्वर न्यायी है मैं और मेरी प्रज्ञा दुष्ट हैं॥ २८ । और हारून