पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१४

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8 उत्पत्ति [२ पर्च और कोई मनुस्य न था कि भूमि की खेती करे । ६। और पृयिबी कुहामा उठता था और समस्त भूमि को मींचता था॥ ७। तब परमेश्रर ईश्वर ने भूमि की धून से मनग्य को बनाया और उस के नथुनों में जीवन का शाम फंकर और मनुष्य जीवता प्राण हुअा। और परमेश्वर ईश्वर ने अदन में परब की ओर एक बारी नगाई और उस मनुष्य को जिसे उस ने बनाया था उस में रफला ॥ ६। और परमेश्वर ईश्वर ने हर एक पेड़ को जो देखने में मुन्दर और खाने में अच्छा है और उस दारी के मध्य में जीवन का पेड़ और भले बुरे के ज्ञान का पेड़ भूमि से उगाया ॥ १०। और उम बारी को सौंचने के लिये अदन से एक नदी निकली और वहां से विभाग होके चार मोहाने हुर। २१ । पहिली का नान फैमून जो हवीलः की सारी भूमि को घेरती है जहां सेरना होता है। १२ । उम भूमि का सोना चोखा है वहां मोती औरर विचार होता है। १३। और दूसरी नदी का नाम जै हन है जो कश की सारी भूमि को वेरती है ॥ १४। और तोमरी नदी का नाम दिजलः है जो अम्हर की पूरब और जाती है और चौथी नदी फुरात है। १५ । यौर परमेश्वर ईश्वर ने उस मनुष्य को लेके अदन की बारी में रकता जिसने उसे सुधारे चैार उम की रखवाली करे॥ १६ । और परमेशर ईश्वर ने मनुष्य को याज्ञा देके कहा कि तू इस बारी के हर एक पेड़ का फल खाया कर ॥ १७ । परन्तु भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ से मत खाना क्योंकि जिस दिन तू उस्मे खायगा तू निश्चय मरेगा॥ १८ और परमेश्वर ईश्वर ने कहा कि मनुस्य को अकेला रहना अच्छा नहीं मैं उस के लिये एक उपकारिणी उम के समान बनाऊंगा॥ १६। और परमेश्वर ईश्वर भूमि से हर एक बनैले पशु और आकाश के सारे पक्षी बनाकर उन कर मनुष्य के पाम लाया कि देखे कि उन के क्या क्या नाम रखता है और जो कुक कि मनुष्य ने हर एक जीते जंतु । हर एक जीते जंतु को कहा वही और मनुष्य ने हर एक ढोर और आकाश के पक्षी और हर एक बने ले पशु का नाम रकवा पर आदम के लिये उस के समान कोई उपकारिणी न मिली। २१ । और परमेश्वर ईश्वर ने मनुथ को बड़ी नीन्द में डाला और बुह सो गया तब उस उसका नाम जत्रा॥ उस की