पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यात्रा ४८। और [१३ पर्च ४.। अब इमराएल के मतानों का निवास जो मिस्र में रहते थं चार सो तीस बरम या॥ ४१ । और चार सौ बीस बरस के अंत में यों हुआ कि ठीक उमौ दिन परमेश्वर की समस्त सेना मित्र के देश से निकल गई । ४२। उन्हें मिस्न के दंश से निकाल लाने के कारण यह रात परमेश्वर के लिये पालन करने के योग्य है कि वह उन्हें मिस्र के देश से बाहर लाया यह परमेश्वर की वुह रात है जिसे चाहिये कि इसराएल के सन्तान अपनी पीढ़ी पीढ़ी पालन करें ॥ ४३। फिर परमेश्वर ने मूसा और हारून को कहा कि फसह की विधि यह है कि उस्से कोई परदेशौ न खावे । ४४ ॥ परंतु हर एक का मेति लिया हुवा दास जब तू ने उस का खननः किया तब वुह उपमे खावे ॥ ४५ । विदेशी और बनिहार सेवक उसे न खायें।४६ । यह एक ही घर में खाया जाये उस का मांस कुछ घर से बाहर न निकाला जावे और न उस की हड्डी तोड़ी जावे ॥ ४ ॥ दूसराएल के संतान की समस्त मंडली उसे पालन कर ॥ जब कोई, परदेशी तुममें बात करे और परमेश्वर के लिये फसह चाहे नो उस के सब पुरुष खतनः करावें नत्र बुह समीप आवे और उसे पालन करे यार बुह एसा होगा जैसा कि देश में जन्म पाया हो क्यांकि कोई अखतनः जन उसे न खाचे ॥ ४६ । देश के उत्पन्न हुओं के चार देशी और बिदेशी के लिये एक ही व्यवस्था होगी। ५ । सारे दूसराएल के संतानों ने जैसा कि परमेश्वर ने मूसा और हारून को आज्ञा किई वैमा ही किया ॥ ५१ । और या हुआ कि ठीक उसी दिन परमेश्वर ने दूसराएल के संतानों को सेना सेना मिस्र के देश से बाहर निकाला। १३ तेरहवां पच ॥ पर परमेश्रर ने मूसा से कहा ।। २ । कि सब पहिलीठे मेरे लिये पवित्र कर जे कुक कि इसराएल के संतानों में गर्भ को खाले क्या मनुष्य और क्या पशु से मेरा है ॥ ३। और मूसा ने लोगों से कहा कि इस दिन को जिस में तुम मिस्र से बाहर आये और बंधुआई के घर से निकले सारण रखिया क्योंकि परमेश्वर तुम्ह बार पल से निकाल लाया खमौरी रोटी खाई न जाये। ४। तुम अविब के मास में नाज के दिन जो