पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१६५

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२३ पर्व तू को पुस्तक । पशु खेत में फाड़ा जाय उस का मांस मत खाइया तुम उसे कुत्ता को दौजिया ॥ २३ तेईसपा पर्ज। मिथ्या संदेश मन फैलाइयो अधर्म की साक्षी में दुष्टों का साथी मन हो॥ २। बुराई में मंडली का पीछा मत कर और तू किसो झगड़े में बहुतों की ओर होके अन्याय का उत्तर मत दीजिया ॥ ३। और न गाल पर उम के व्यवहार पद में दृष्टि कीजियो । ४। यदि त अपने वैरी के बैल अथवा गदहे को बहकते देख तो उसे आवश्यक उस पास पहुंचाइयो । ५। यदि तू अपने बेरी के गदहे को देखे कियाझ के नीचे बैठ गया क्या उस को सहाय न करेगा तू निश्चय उस को सहाय कौजियो । ६। तू अपने कंगाल के ब्यबहार पद में न्याय से अलग मत रहियो ॥ ७॥ झठी बात से दूर रहिया और नि पियां और धर्मियों को घात मत कौजिया क्योंकि में दुष्टों को निर्देष न ठहराऊंगा ॥ ८ । तू कर मत लेना क्योंकि अोर दृष्टिमानों को अंधा करता है और धान वा के बचन का फर देता है। । विदशियों पर भी अंधेर मत कीजियो क्योंकि तुम परदेशी के मन को जानने हो इस लिये कि तुम अाप भी मिस के देश में घरद शो थे। १.। अपनी भूमि में छः बरस बो और उस के फल एकट्ठ कर॥ १९ । पर मानव में उसे चैन में पड़ा रहने दे जिसने तेरे लोग के कंगाल उसे खायें और जो उन से बचे ऐत के पशु चर इसी रीति अपनी द्राक्षा और जलपाई की वारी से व्यवहार कौजिया १२ । छ: दिन अपना काम काज करना और सात दिन विश्राम कौजिया जिसन तेरे बैल और तेरे गदहे चैन करे और तेरो दासियों के धेटे और परदेशी सुस्तावें ॥ १३ । और सब बात में जो मैं ने तुझे आज्ञा दिई है चौकस रह उपरी देवता का नाम लो मत ले और तेरे मुंह से सुना न जाय ॥ १४ । तू बरस दिन में तीन बार मेरे लिये पर्य मान तू अखमौरी रोटी का पर्व मान ॥ १५। सात दिन लो जैमा में ने तुझे आज्ञा किई है असमोरी रोटो खा आविष के मास में कोई मेरे आगे छंका न आवे॥ १.६ । लबने का पर्व तेरे परिश्रम के प्रथम ही फल जा