पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१७०

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बाबा [२६ पब में लगाइयो। २७। झालर के आगे कड़े वहंगर के कारण हो कि मंच उठाया जाय। २८। और तू वहंगर शमशाद की लकड़ी का बनाना और उन्हें सोने से मढ़ना कि मंच उन से उठाया जाय ॥ और उस के पात्रों और करकुल और ढकने और उडेलने के कटोरे निमल सोने से बनाइयो। ३० । और मंच पर भेंट की रोटियां मेरे सन्मुख सदा रखियो। ३१। और तू दीपक का एक झाड़ निर्मल सोने का बना पीर हुए कार्य का झाड बने और उस को डडी और उन की डालियां और उस की कली और उस के फल और उस के फल एकहीं के हाव ॥ ३२। और छ: डालियां उस की अलंगी से निकल एक असंग से तीन टूमरी अलग से तीन हे॥ ३३। और चाहिये कि तीन कली बदामी एक डाली में और फूल फल के साथ है और उमी रीति से तीन कली बदामी हसरी डाली में अपने फल फल के साथ हो मी रीति से कूः डालियों में जो दीघर से निकली हुई. हां ॥ ३४ । और दीअट में चाहिये कि चार कली बद मी फल फल के साथ हां ॥ ३५ । और एक एक कनी उस को दा दो डलियां के नीच हा छः डालियां जा दीअर से निकली हैं उन के नीचे रेमी ही हो ॥ ३६ । उन की कली और उन की डालियां उसी से हो और सब के सब गढ़े हुए निर्मल सोने के हो॥ ३७॥ वैर तू उस के लिये सात दीपक वना और उन्हें जन्ना जिमते उस के सन्मुख ऊजियाला हे।वे ॥ ३८ । और न उस की कतरनौ और उम का पान निर्मल सेने के बना । उसे इन समस्त पात्र समेत मन सवा एक निर्भस सेने के वनावे॥४० चोकम हो कि जैसा मैं ने तुझे पहाड़ पर दिखाया तू उसी डोल का बना। ओ वटे हुए २६ छत्रीसशं पर्व । परतु मौने सूती कपड़े के दस बेटों का तंब बना नीला और बैंजनी और लान र न उन्हें चित्रकारी से करोषीम बना । और हर एक घोट की लंबाई अट्ठाईस हाथ और हर एक ओर को चौड़ाई चार हाथ को हो और हर एक ोट एक ही नाप की हो ॥ ३ ॥