पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१७२

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यात्रा के एक [२७पर्छ और दो पाट तंबू के कोनों के लिये दोनों ओर बना ॥ २४ । और वे नीचे में मिलाये जाये और ऊपर से एक कड़ी में जोड़ लायें एसा ही दोनों कोनों के लिये हाय! २५ । सेा अाठ पाट और उन के सोलह चांदी के पाए होंगे दो पाए एक पाट केनीच और दो पाए दूसरे पाट के नीचे । २६ । चार तू शमशाद की लकड़ी के अड्गे बना तंबू अलंग के पाट के लिये पांच ॥ २७॥ और पांच अड़गे तंब की दूसरी और के पाट के लिये पार पांच अडंगे तंब के अलंग के पाटों के लिय पश्चिम के दोनों अलंग के लिये। २८। और पार्टी के मध्य के बीच का अगा एक जोर से दृमरी और लेने पहुंचे । २६। और पारी को सोने से मद और अगों के लिये सोने के कड़े बना और अड़गों को सोने से मद ॥ ३० । और तंबू को जैमा कि मैं ने तुझे पहाड़ पर दिखाया है वैसा ही खड़ा कर। ३१ । और बरे हुए भौने बूटे काह हुए मूती कपड़े से नौला और बैंजनी और लाल घंघट और करोबी समेत बना। ३२ । और उसे सेने से मढ़े हुए शमशाद की लकड़ी के चार खंभे पर लटका उन के सेोने के अकुरे चांदी की चार चूलों पर हावें ॥ ३३ । और चूंघट को घुण्यो के नीचे लटका जिमने न चंट के भीतर साक्षी की मंजूषा लावे और बुह बूंघट पवित्र और महा पवित्र स्थान में विभाग करेगा॥ ३४। और दया का प्रासन मरक्षी की मंजूषा पर महा पवित्र स्थान में रख॥ ३५ । और मंच को चूंघट के बाहर रख और दीअर को मंच के सन्मुख तंब की एक और दक्षिण अलंग और मंच को टत्तर अलंग रख ॥ ३६ । और तंबू के द्वार के लिये नौला और बैंजनी और लाल और बटे हुए भीने बस्त्र से बूटा काढ़ी हुई एक ओट बना ॥ ३७। और ओट के लिये शमशाद के पांच खंभ बना और उन्हें सोने से मढ़ उन के अंकुरे सोने के हो और तू उन के लिये पीतल के पांच पाए दाल के बना। २७ सत्ताईसवां पज़। र तू शमशाद की लकड़ी की एक यज्ञवेदी पांच हाथ लंबी और पांच हाथ चौड़ी बना यज्ञवेदी चकोर होये और उम को ऊंचाई तीन हाथ हो॥ २। और उस के चारों के लों के लिय सोग