पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२२९

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को पुस्तक 1 हो। १३ पञ्च] २२१ ४२ । यदि उस चंदुले सिर अथवा माथ में उजला लाल मा घाव कोढ़ है जो उस के चदुले सिर अथवा माथे में फैला हुश्रा है॥ ४३। सेो याज्ञक उसे देख और यदि यात्र के जपर उजला लाल मा उम के चंदुले मिर अथवा चंदुले माथे में दिखाई दच जैमा कि शरीर के चमड़ में कोढ़ दिखाई देता है ॥ ४४। तो वह मनुष्य काही अपवित्र है याजक उसे सर्वथा अपवित्र ठहरावे उम की मरी उस के सिर पर ४५। और जिम कोढ़ी पर मरी है उस के कपड़े फाड़े जाय और मिर नगा किया जाय तब बुद्द अपनी उपरौ हांठ पर बाड़ करे और चिल्ला चिल्ला के कहे कि अपवित्र अपवित्र । ४६ । जितने दिन लो मरी उस पर रहे बुह अशुद्ध रहेगा बुर अपावन अकेला रहा करे उस का निवास छावनी के बाहर होवे ॥ वुह वस्त्र भी जिस में कोड़ की मरौं हो ऊन का अघबा सूत का वस्त्र १८। उस वस्त्र के ताने में अथवा बाने में सूत का हो अथवा जन का और चाहे चमड़े पर हो चाहे किमी बस्तु पर जा चमड़े को हो । ४६ । और यदि वुह मरी बस्त्र में अथवा हरौ सो अथवा लाल मी हो अथवा चमड़े में अथवा ताने में अथवा वाने में है। अथवा किसी चमड़े की में हो बुह मरी का कोढ़ है याजक को दिखाया जाय । और याजक उस मरी को देखे और उसे सात दिन बंद करे॥ ५११ र सात दिन उस मरो को देखे यदि वह मरी कपड़े पर अथवा ताने बाने में अथवा चमड़े पर अथवा किसी वस्तु पर जो चमड़े से बनी हुई है फैल जाये वुह मरी कटाव का काढ़ है बुह अपवित्र है॥ ५२ । सेो वुह उस बस्त्र को जो ऊन का अथवा सूत का हे। जिस के ताने में है अथवा बाने में और चमड़े की कोई बस्त जिस में मरी है उसे जला देवे क्योंकि बुह कटाव का कोढ़ है बुह आग से जलाया जाय ॥ ५३ । और यदि याजक देखे मरी जा बस्त्र में ताने में अथवा थाने में अथवा चमड़े की किसी बस्तु में है फैलो नहीं । ५४ 1 लो याजक अाज्ञा करे कि उस वस्तु को जिस में मरी होवे और फिर उसे और सात दिन ला रख काड़े॥ ५५ ॥ फिर उसे पाने के पीछे उस मरी को देखे यदि उस मरी का रंग बदला न दख और मरी न फली हो तो बुह अपवित्र है उसे आग में जलावे कि बुह वस्तु कि बुह