पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२३०

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२२२ व्यवस्था कराव चाहे भीतर चाहे बाहर हो । ५६ । और यदि याजक दृष्टि करे और देखे कि मरौधोने के पीके कुछ काली है। तो बुह उम् वस्त्र से और क्षमडे से ताने से अथवा बाने से फाड़ फके । ५.७। और यदि वह मरी वस्त्र में लाने में अथबा बाने में प्राथवा किमी चमड़े को बस्तु में प्रगट बनी रहे तो वुह फैलती है तू उसे जिन में मरो है आग से जला देना । ५८। और यदि मरी उस बस्त्र से ताने से अथवा बाने से अथवा चमड़े की बस से जिसे न पायेगा यदि मरी उन से जानी रहे तो बुह दो बार धाया जाये और पवित्र हो जायगा। ५८ । यह कोढ़ की मरी की व्यवस्था है जो जन अथवा मूत के बार में ताने अबबा बाने में अथवा किमी चमड़े की वस्तु में पवित्र अथवा अपवित्र ठहराये। १४ चौदहवां पढ़। फर परमेश्वर मसा से कहके बोला ॥ २। कि उस के लिये जिम दिन कोढ़ी पवित्र किया जावे यह व्यवस्था है उसे याजक पाम लावें ॥ ३ ॥ और याजक छावनी से बाहर जाके देखे यदि वुह कोढ़ौ कोढ़ की मरी से चंगा हो गया हो। ४। तो याजक आज्ञा करे कि जो पवित्र किया जाता है से अपने लिये दो पवित्र जीते पक्षी और शमशाद की लकड़ी और लाल और जफर लेवे ॥ ५ । फिर याजक आज्ञा करे कि उन पक्षियों में से एक मिट्टी के पात्र में बहते पानी पर मारा ज्ञाय ॥ ६ । और बुह जीते पक्षी का और शमशाद की लकड़ी औऔर लाल और फा समेत ले के उस पक्षी के लोहू में जो बहते पानी पर मारा गया चभोरे।७। और जो कोढ़ से पवित्र किया जाता है उस पर सातबार छिड़के और उसे पवित्र ठहरावे और उस जीने पक्षी को खुले चौगान की और उड़ा देवे ॥ ८। और जो पवित्र किया जाता है सो अपने कपड़े धोये और अपने सारे बाल मुंडावे और पानी में स्नान करे जिसत पवित्र होवे उस के पीछे वह छावनी में आवे और सात दिन लो अपने तंबू के बाहर ठहरे॥६ । और सात दिन अपने सिर के सब बाल और अपनी डाढ़ी और अपनी भौहे अर्थात् अपने सारे बाल मुंडावे और अपने कपड़े धावे और अपना शरीर भी पानी से धाबे तब वुह पवित्र होगा। १० ।