पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२४

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उत्पनि <। परन्तु उस पंडुकी ने अपना चंगुल टिकने को ठिकाना न पाया और वुह उस के पास नौका पर फिर आई क्योंकि जल सारी टधिवी पर था तब उस ने अपना हाथ बढ़ाके उसे लेलिया और अपने पास भाव में लेलिया॥ १.। फिर बुह और सात दिन ठहर गया और फिर उस ने उस पंडुकी को नाय से उड़ा दिया ॥ ११ । और बुह पंडुकी सांझ को दस पास फिर आई और क्या देखता है कि जलपाई की एक पत्ती उस के मुंह में है नत्र नूह ने जाना कि अब जल पृथिवी पर से घर गया । १२। और बुह और भी सात दिन टहरा उस के पीछे उस ने उस पंडुकी को छोड़ दिया बुह उस के पास फिर न आई॥ १३। और छः सौ एक बरम के पहिले मास की पहिली तिथि में यों हुआ कि जल प्रथिवी पर से सूख गया और नह ने नाय की छत उठा दिई और क्या देखता है कि पृथिवी ऊपर से रखी है। १४। और दूसरे मास की सत्ताईसवी तिथि में पृथिवी सूखी थी। १५ । तब ईथर नह को यह कहके बोला । १६ । कि अब तू नौका से निकल था और तेरी पत्नी और तेरे बेटे चौर तेरे बेटों की पल्जियां तेरे संग नाव पर से उतर जायें ॥ १७॥ हर एक जीवते जंतु सारे शरीर में से क्या पंछी क्या ढोर और क्या कौड़े मकोड़े जो भूमि पर रेंगते चलते हैं सब को अपने संग ले निकल जिसने उन के बंश पृथिवी पर घात बढ़ें और फलबंत हो और एथिबी पर फलें ॥ १८। तब नूह निकला और उस के बेटे और उस की पत्नी और उम् के बेटों की पत्नियां उस के संग ॥ १६। हर एक पशु हर एक रेंगवैये जंतु और हर एक पंछी जो कुछ कि एथिवी पर रेंगते हैं सब अपने अपने भांति के समान नाव से निकल गये ।। २०॥ और ने परमेश्वर के लिये एक बंदी बनाई और सारे पवित्र पशु और हर एक पवित्र पंछियों में से लिये और होम की भेंट उस बेदी पर चदाई। २१ । र परमेश्वर ने सुगंध सूंघा भैौर परमेश्वर ने अपने मन में कहा कि मनुष्य के लिये मैं पृथिवी को फिर कधी साप न देऊंगा इस कारण कि मनुष्य के मन कीभावना उस की लड़काई से बुरी है और जिस रीति से मैं ने सारे जीवधारियों को भारा फिर कभी न मारूंगा। २२। जब ना एधिवी है बोना और काटना