पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२९२

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जोर मूसा के पास २८४ गिनती जिसने उन के लिये विश्राम का स्थान ढूंढ ॥ ३४। और जब वे वाधनौ बाहर जाने थे तब परमेश्वर का मेघ दिन को जपर ठहरता था। ३५ । और जब मंजपा आगे बढ़ती थी तब या होता था कि मूसा कहना था कि उठ हे परमेश्वर तेरे शत्रु छिन्न भिन्न होवें और जे तुझ से बैर रखता है से तेरे आगे से भागे और जब बुह ठहरता था बुह कहना था कि हे परमेश्वर म हसा दूसराएलियों में फिर छा। ११ ग्यारहवां पई। पर जब लोग कुड़कुड़ाने लगे तो परमेश्वर उदास हुश्रा और सुना और उस का क्रोध भड़का और परमेश्वर की आग उन में फूट निकली और छावनी के अन्य को भस्म किया। २ । तब लोग मूसा चिल्लाये और जब ममा ने परमेश्वर से प्रार्थना किई नब आग बुझ गई ॥३॥ इम लिय कि परमेश्वर को आग उन में भड़की उस ने उस स्थान का नाम ज्वलन रक्खा ॥ ४ । और मिली जुली मंडली जो उन में यौ कुइच्छा करने लगी और दूसराएल के मतान भी बिलाप करके कहने लगे कि कौन हमें मांस का भोजन देगा॥ ५ । हमें वुह मछली की सुधि अाती है जा हम संत से मिस्र में खाते थे और खीरे और खरबूज और गदना पियाज़ और लहसुन। ६। परंतु अब तो हमारा प्राण सूख गया यहां तो हम मन्न को छोड़ कुछ भी नहीं देखते ॥ ७॥ और मन धनिये की माई र उस का रंग मोती का मा था॥ लोग दूघर उधर जाके उसे एकट्ठा करते थे और चक्की में पीसते थे अथवा उखलौ में फटते थे और फुलका बनाके तवे पर पकाते थे उस का खाद टटक तेन्न की नाई था॥ हा और रात को जब छावनी पर ओस पड़ती थी तब मन्न उम पर पड़ता था। २.। तब मूसा ने मुना कि लोगों के हर एक घराने का हर एक मनुष्य अपने अपने 'तंबू के द्वार पर बिलाप कर रहा है तो परमेश्वर का क्रोध अत्यंत भड़का और मूसा भी उदास जत्रा ५९ । तब ममा ने परमेश्वर से कहा कि तू अपने दास का क्यों दुःख दे रहा है और तेरी दृष्टि में मैं ने क्यों नहीं अनुग्रह पाया कि तू ने इन सब लोगां का बोझ मुझ पर डाला है ॥ १२ । कया मैं ने