पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२९९

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१४ पर्ची कौ पुस्तका कहा कि मिस्र के लोग सुनेगे क्योंकि तू अपनी सामर्थ्य से इन लोगों को उन के मध्य से निकाल लाया॥ १४ । और ये इस देश के बासी से कहेंगे क्योंकि उन्हों ने तो मुना है कि त परमेश्वर इन लोगों के बीच है कि तू हे परमेश्वर आम्ने साम्न देखा जाता है और कि तेरा मेघ उन पर रहता है और कि तू दिन को मेघ के खंभे में और रात को आग के खंभे में उन के आगे आगे चलता है। १५ । सेा यदि तू इन लोगों को एक मनुष्य के समान मार डाले तब जातिगण जिन्हों ने तेरी कीर्ति सुनी हैं कहगे ॥ १६ । इम कारण कि परमेश्वर इन लोगों को उम देश में पहुंचान सका जिसके विषय में उन से किरिया खाई थी इस लिये उस ने उन्हें अरण्य में धान किया । १७। सो में तेरी बिन तो करता ह हे मेरे प्रभु अपनी सामर्थ्य को प्रगट कर जैसा तूने कहा है॥ १८॥ कि परमेश्वर बड़ा धीर और महा ट्याल है पापों और अपराधों को क्षमा करता है जो किसी भांति से न छोड़ेगा पितरों के पापों को उन के लड़कों से जो उन की तीसरी और चौथी पीढ़ी है प्रतिफल देता है। १६ । अब तू अपनी दया की अधिकाई, से दून लोगों का पाप क्षमा कर जैमात मिस से लेके यहां लो क्षमा करता आया है। २०। परमेश्वर ने कहा कि मैं ने तेरे कहे के समान क्षमा किया ॥ २१ ॥ परंतु अपने जीवन से समस्त प्रथिवी परमेशर की महिमा से भर जायगी। २२। क्योंकि उन सब लोगों ने जिन्हों ने मेरा विभत्र र मेरा आश्चर्य जो मैं ने मिस्न में और उस अरण्य में प्रगट किया देखा अबलों मुझे दसबार परखा और मेरा शब्द न माना ॥ २३ । से वे उस देश को जिस के कारण में ने उन के पिता से किरिया खाई थी न देखेंगे और जितना ने मुझे खिझाया उन में से कोई उसे न देखेगा । २४ । परंतु मेरा दाम कालिब कोरंकि और ही आत्मा उस के साथ था और उस ने मेरी बात परी मानी है में उसे उस देश में जहां बुह गया था ले जाऊंगा और वे जो उम के बंश से होंगे उस के अधिकारी बनग॥ २५ । छब अमाल को और कनानी तराई में बाम करते थे सो कन फिरे और लाल समुद्र के माग से अरण्य में जायो॥ २६। फिर परमेशार मुमा और हारून से कह के बेन्ना ॥ २७ ॥