पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३०

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उत्पत्ति पनी का नाम सरी था और नहर की पत्नी का नाम मिलकः जो हारन की बेटी थी वहीं मिलकः और इसकाह का पिता था॥ ३० । परन्तु मरी बांझ थी उस का कोई संतान न था। ३१ । और तारह ने अप ने बेटे अविराम को और अपने पोते हारन के बेटे लूत का और अपनी बहू अविराम की पत्नी सरी को लिया और उन्हें अपने साथ कन्लदानियों के कर से कनान देश में लेचना और वे हारन में आये और वहां रहे ॥ ३२। और तारह दो मा पांच बरम का होके हारन में मर गया॥ १२ बारहवो पद व परगेश्वर ने अबिराम से कहा था कि तू अपने देश और अपने कुनबे से और अपने पिता के घर से उस देश की जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा॥ २। और मैं तुमसे एक बड़ी जाति बनाऊंगा और नुझे आशीष देऊंगा और तेरा नाम बड़ा करूंगा और न एक आशीयाद होगा ।। ३ । और जो तुझे आशीष देगे मैं उन्हें आशीष देऊंगा और जो तुझे धिक्कारेगा मैं उसे प्रियारूंगा और पृथिवी के मारे घराने तुरसे आशीष पाबेगे॥ ४। सेा परमेम्वर के कहने के समान अविराम चला गया और लूत भी उस के संग गया और जब अबिराम हारन से निकला तब बुह पचहत्तर बरस का था। ५। फिर अविराम ने अपनी पत्नी सरी को और अपने भतीजे लत को और उन की मारी संपत्ति को जो उन्हों ने प्राप्ति किई थी और उन के सारे प्राणियों को जो हारन में मिले थे साथ लिया और कनान देश को जाने के लिये चल निकले सो चे कनान देश में आये ॥ ६। और अविराम उस देश में हाके सिक्रम के स्थान लो चला गया मारिः के बनूत लो तब कनानी उस देश में थे॥ ७॥ फिर परमेश्वर ने अविराम को दर्शन दे के कहा कि यह देश में तेरे बंश को देऊंगा तब उस ने परमेश्वर के लिये जिस ने उसे दर्शन दिया था वहां एक बेदी बनाई। ८। फिर वुह वहां से बैतएल की पूरब एक पहाड़ की ओर गया और अपना तंबू बैतएल की पच्छमि और खड़ा किया और अई पूरब और था और वहां