पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३१४

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[२. पन पशुन ने पीया। ३०६ गिनती सब बहुताई से पानी निकला और मंडली और उन के १२। तब परमेश्रर ने ममा और हारून को इम कारण कहा कि तुम ने मेरी मतीति न किई कि इसराएल के संतानों की दृष्टि में मुझे पवित्र करो इस लिये तुम इस मंडली को उस देश में जो मैं ने उन्हें दिया है न लाशेगे। १.३। यह झगडे का पानी है क्योंकि इसराएल के मतानों ने परमेम्पर से झगड़ा किया और उम ने उन के मध्य आप को पवित्र किया । १४। और काहिस से ने अटूम के राजा के पाम दूतों को भज्ञा कि तेरा भाई दूसराएल कहना है कि जो जो दुःख हम पर चौता है तू जानता है। १५ । कि किस भांति से हमारे पितर निम्न में उतर गये और हम मिल में बहुत दिन रहे और मिमियों ने हमें और हमारे पितरो को दुःख दिया । १६ । और जब हम परमेश्वर के आग चिरलाये नव उस ने हमारा शब्द सुना और एक दूत को भेज के हमें मिस्न में से निकाल लाया और देख हम तेरे अत्यंत मियाने के नगर कादिम में हैं। १७। सो हमें अपने देश में होके जाने दीजिये कि हम खेती और दाखों की बारिकों में न जायेगे और न कत्रों का पानी पौवगे हम राज मार्ग से होके निकले चले जायेंगे हम दहिने अथवा बायें हाथ न मुड़गे जब लेो कि तेरे सिवानों से बाहर न निकल जाय ॥ १८। तव अटूम ने उसे कहा कि तुम मेरे सिवाने में होके न जाना नहीं तो मैं तलवार से तुझ पर निकलंगा॥ १६। फिर इसराएल के संतानों ने उसे कहा कि हम राज मार्ग से होके चले जायगे और यदि मैं अथवा मेरे ढार तेरा पानी पौय तो मैं उस का दाम देऊंगा कुछ न करूंगा केवल मैं अपने पायों से चला जाऊंगा॥ २.। उस ने कहा कि न कधी जाने न पावेगा तब अहम बड़े बल से और बहुत लोगों के साथ उस पर चढ़ आया । २१ । सो अहूम ने इनराएल को अपने सिबाने में से जाने न दिया इम कारण इसराएल उसा फिर गय॥ २२। और इसराएल के मतानों की सारी मंडली काहिस से कूच कर के हर पहाड़ पर आई ॥ २३ । और परमेश्रर ने अहम देश के सिवाने के लग हूर पहाड़ पर मूमा और हारून से कहा। २४। कि हारून अपने लोगों में एकट्ठा किया जायगा क्योंकि बुह उस देश में जिसे मैं ने