पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३१८

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गिनती [२२ पब २२ बाईसवां पच। फर इसराएल के मतान आगे बढ़े और यरीहू के लग यरदन के सी पार मानब के चौगाना में डेरा किया ॥ २। और जब सफर के बेटे चलक ने सब देखा जो इसराएल ने अभूरियों से किया ।। ३। तो मोअव उन लोगों से निपट खरा इस कारण कि वे बहुत थे और मोअब इसराएल के संतानों के कारण से दुःखित हुआ। ४। तब मोअब ने मिदयान के प्राचीनों से कहा कि अब ये जथा उन सब को जो हमारे आम पास हैं यां चाट जाये गौ जैसे कि बैल चौगान की घास को चट कर लेता है और सफूर का बेटा बलक मोवियों का राजा था। सेो उस ने बअर के बटे बलम पास फतरः को जा उस के लोगों के संतान के देश की नदी पास थे दूत भेजे जिसने उसे यह कह के बुला लाव कि देख लोग मिस्र से बाहर आये हैं देख उन से एथिवी पि गई है और मेरे साम्ने ठहरे हैं॥ ६ । सो अब आइये और मेरे लिये उन्हें साप दौजिये क्योंकि वे मुझ से अत्यंत वली हैं क्या जान में उन्हें मार सकू और उन्हें इस देश में से खदड़ देऊ क्यांक मैं निश्चय जानता हूं कि जिसे तू आशीष देता है से आशीष मान करता है और जिसे तू साप देता है नुह नापित है। ७। मोअब और मिट्यान के प्राचीन रोने का पतिफल हाथ में लेके चले और बलग्राम पास आये और बलक का बचन उसे कहा। ८। उस ने उन्हें कहा कि आज रात यहां रहो और जैसा परमेश्वर मुझे कहेगा मैं तुम्हें कहंगा से मेअिब के प्रधान बलश्राम के संग रहे। सब ईश्वर बलाम पास आया और उसे कहा कि तेरे संग ये कान मनुष्य । १० । बलाम ने ईश्वर से कहा कि मोअब के राजा सफर के बेटे बलक ने उन्हें मुझ पास भेजा और कहा ॥ ११ । कि देख लोग मिस से निकल आये हैं जो एथिवी को ढांप रहे हैं सो श्रा मेरे कारण उन्हें स्राप दे क्या जाने मैं उन से जय पाक और उन्हें खदेड़ देऊ॥ १२। तब ईश्वर ने बलशाम से कहा कि न उन के साथ मत जा तू उन्हें साप मत दे क्यांकि वे श्राशीष प्राप्त किये हैं । १३ । और बलग्राम ने विहान को उठके पलक के अध्यक्षा से कहा कि अपने देश को जाओ