पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३२०

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गिनती [२२ पञ्च गदही का लाठी से मारा॥ २८। तब परमेश्वर ने गदही का मंद खाला और उम ने बल पाम से कहा कि मैं ने तेरा क्या किया है कि तू ने मुझे अब तीन बार मारा ॥२६ । चौर बलश्राम ने गदही से कहा कि तू ने मुझे वोडहा बनाया मैं चाहता कि मेरे हाथ में तलवार होतो तो तुझे मार डालता ॥ २ . । पर गदही ने बलाम से कहा कि क्या में तेरी गदही नहीं हं जिम पर तू आज के दिन लो चढ़ता है क्या मैं ऐसा कधी करती आई वह बोला कि नहीं॥ ३१ । तब परमेम्पर ने बलगम की श्राख खाली और उम ने परमेश्वर के टूत को मार्ग में खड़े हुए देखा और उस के हाथ में खोंचौ हुई तलबार है उस ने अपना सिर झकाया और बांधा गिरा। ३२ । तब परमेश्वर के दूत ने उसे कहा कि तू ने अपनी ग हौ को नौन बार क्यों मारा देख मैं तेरे बिरुड में निकला है इस लिये कि तेरी चाल मेरे आगे हठीली है। ३३ । और गदही मुझे देख के तीन बार मुझ से फिर गई यदि बुह मुक्त से न फिर ती नो निमय मैं तुझे मार ही डालता और उसे जीती है।ड़ता ॥ ३४ । त्वचलाम ने परमेश्वर के दूत से कहा कि मुझ से परप हुश्चा क्योंकि मैं ने न जाना कि त मेरे बिरुद्ध मार्ग में खड़ा है सो अब यदि तू अप्रसन्न है तो मैं फिर जाऊंगा ॥ ३५ ॥ पर परमेश्वर के दूत ने बलत्रामसे कहा कि मनुष्यों के साथ जा परंतु केवख जो बचन मैं तुझे कई माई कहिया से बलशाम बलक के प्रधानों के साथ गय ॥३६ । जय बनक । सुना कि वलाम पहुंचा तो उस ने अत्यंत तोर को अनून के सिवानेमें मोअन के एक नगर लो उम की अगुवाई को निकला ॥ ३७ । तब बलक ने बन्न थाम से कहा कि क्या में ने बड़ी विनती करके तुझे नहीं बुलाया नू मुझ पास क्यों चला न आया क्या निश्चय मैं तेरी महात्मा नहीं बढ़ा सका। ३८ । बलाम ने बालक से कहा देख मैं तेरे पाम आया क्या मा में कुछ शक्ति है कि मैं कहं जा बात ईश्वर मेरे मूंद में डालेगा साई कहूंगा। ३६ । और बलग्राम और बलक साथ साथ गये और करियासहसूस में पहुंचे ॥ ४० । नब बनक ने बैल और भेड़ चढ़ाये और बलधाम के और उन अध्यक्षों के पास जो उस के साथ थे भेज। ४१ । और बिहान को यां हुया कि बालक ने बल्ल थाम को साथ लिया और उसे वपाल के ऊंचे स्थानों में लाया जिमने बुह वहां से लोगों को बाहर बाहर देखे ।।