पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३४

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२४ उत्पत्ति [१५ पर्छ क्योंकि बुह इसकाल र अनेर का भाई अमरी ममरे के बलतों के नीचे रहता था और वे अबिराम के सहायक थे ॥ १४॥ और अविराम ने अपने भाई के ले जाने की बात मुन के अपने घर के तीन सौ अठारह दासों को लिया और दान ला उन का पीछा किया ॥ १५ । और उस ने और उस के सेवकों ने आप को रात को विभाग किया और उन्हें मारा और खूबः तो जो दमिश्क की बाई ओर है उन्हें रगेदे चले गये । १६ । और बुह सारी संपत्ति को और अपने भाई. लत को भी और उस की संपत्ति को और स्त्रियों को भी और लोगों को फेर लाया । ९७। और किदरलाउमर को और उस के संगी राजाओं को मारके फिर आने के पीछे सदूम का राजा उससे भेंट करने को सबी की तराई लो जो राजा की तराई है निकला ॥ १८। और सालिम का राजा मलिकिसिटक रोटी और दाख रम लाया और बुह अति महान ईम्बर का याजक था। १६ । और उस ने उसे आशीष दिया और बोला कि आकाश और पृथिवी के प्रभू अति महान ईश्वर का अविराम धन्य होवे ॥ २.। और अति महान ईश्वर को धन्य जिस ने तेरे बैरियों को तेरे हाथ में सैप दिया और उस ने सब का दसवां भाग उसे दिया ॥ २१ । और सटूम के राजा ने अविराम से कहा कि प्राणियों को मुझे दीजिये और संपनि आप रखिये ॥ २२ । तब अविराम ने मदूम के राजा से कहा कि मैं ने अपना हाथ अति महान ईश्वर परमेश्वर के आगे जो खर्ग और पृथिवी का प्रभ है उठाया है॥ २३ । कि मैं एक नागे से लेके जाने के बंद ला श्राप का कुछ न लेऊंगा सो मत कहियो कि मैं ने अविराम को धनमान किया ॥ २४ । परन्तु वुह जो तरुषों ने खाया और उन मनुष्यों के भाग जो मेरे संग अर्थात् अनेर और इसकाल और नमरे के वे अपने भाग ले। १५ पंढरहवा पर्य। न बातों के पीछे परमेश्वर का बचन यह कहते हुए दर्शन में अबिराम पर पहुंचा कि हे अबिराम मन डर मैं तेरी ढाल और तेरा बड़ा प्रतिफन हं॥ २। तब अबिराम ने कहा कि हे प्रभु ईश्वर तू केरल ।