पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३४९

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को पुस्तक। बाहर आते। ३५ पर्व ३४१ का कुटुंब जब उम घातक को पात्रे उसे घात करे। २२। और यदि काई किम को बिना बैर के अकस्मात् ढ के न दवे अथवा बिना दांव बान उन पर काई बस्तु डाल दवे॥ २३ । अथवा उसे बिन द ख एसा पत्थर फ क कि उस पर गिरे और बुह मर जाय और बुह उम का वैरी न था और न उम को बुराई चाहता था॥ २४ । तब मंडनी उम घातक और नोहू के पलटा दायक के मध्य दूम न्याय के समान विचार करे। २५ । कि मडली उस घातक को लोहू के पलटा दायक के हाथ से कुडा के उस शरण नगर में जहां वह भाग के गया था फिर भेज देबे और बुह प्रधान याजक के जा पवित्र तेल से अभिषिक्त हुआ था मरने लेो वहीं रहे॥ २६॥ परतु यदि घातक उस शरण नगर के मित्राने से जहां वुह भाग के गया था २७। और लोहू का पलरा दायक धानक को शरण नगर के सिवाने से बाहर पात्र और घातक को मार डाले तो उन पर घात का अपराध नहीं ॥ २८। क्यांकि उस घानक को उचित था कि प्रधान यानक को मृत्यु लेो शरण नगर में रहता और उस के मरने के पोर अपने अधिकार के देश में आना ॥ २९। से तुम्हारौ सारी पीढ़ियां में और समस्त बस्तियों में न्याय के लिय यह ब्यवस्था होगी। ३.। जा किसी को मार डाले तो घातक माक्षियों को साखौ के समान हात किया जाय परंतु एक माशी को साखौ से किसी को घान न करना ॥ ३१॥ और तुम घातक के प्राण की संतौ जो घात के याम्य है मोल मत लेओ परंतु बुह अवश्य मारा जाय॥ ३२। और तम उस्म भी जो अपने शरण के नगर को भाग गया हो धान का मेलि मत ले जिसन वुह याजक की मृत्यु लो अपने देश में श्रा बसे । ३३ । सो जहां हो उस देश को अगुइ मत कोजियो क्याकि घात हौ से देश अशुद्ध होता है और दश उस लोह से जा उस में बहाया गया है शुद्ध नहीं होता परंतु केबल उसी के लोह से जिम ने उसे बहाया है। ३५ । सो तुम अपने निवास के देश को जहां मैं रहता हूं अशुद्द न करो क्योकि मैं परमेश्वर इसराएल के संतान के मध्य में रहता हं॥ V