पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३७४

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विषाद पच बताया फिर गये उन्होंने अपने लिय एक ढाली हुई मनि बनाई। १३ । और परमेश्वर मुझे कहके बाला कि मैं ने इन्हें देखा है देख ये कठोर लोग हैं। १४ । मुझे छोड़ कि में उन्हें नाश वारूं और उन घर नाम वर्ग के तले से मिटाडानं बार में तुझ से एक जाति जा इस्म बहुत और बली है बनाऊंगा। १५ । सो मैं फिरा और पहाड़ पर से उतरा और पर्वत आग से जल रहा था और नियम की दोनों पटियां मेरे दोनों हाथ में धौं ॥ १६ । तब मैं ने दृष्टिफिई और क्या देखता है कि ने परगेश्वर अपने ईश्वर का पाप किया था और अपने लिय ढाला इना बछड़ा बनाया तुम बहुत शीन उस मार्ग से जो परमेश्वर ने तम्ह बनाया फिर गये ॥ १७॥ तव मैं ने दानों परियां ले के अपने दोनों हाथों से पटक दिई और तुम्हारी आखों के आगे तोड़ डाली ॥ १८। और उन सव पापों के कारण जो तुम ने किये जब तुम ने परमेश्वर की दृष्टि में बुराई करके उसे रिस दिलाई मैं आगे की नाई चालीस रात दिन परमेश्वर के धागे गिरा पड़ा रहा मैं ने रोटो न खाई, न पानी पीया ॥ १८ । क्योकि में परमेश्वर के कोप और क्रोध से डरा कि बुह तुम्ह नाश करने के लिये कोपित था परंतु परमेश्वर ने उस समय में भी मेरी मुनी ॥ हारून को नाश करने के लिये परमेश्वर का काध भड़का तब मैंने उस समय में हारून के लिये भी प्रार्थना किई॥ २१। और मैं मे ॥ २१ तुम्हारे पाप को अर्थात् उस बछड़े को जो तुम ने बनाया था लिया और अग में जलाया फिर उसे कूटा और बुकनो किया ऐसा कि वुह धनसा हो गया और मैं ने उस धल को नाली में जा पर्वत से बहती थी डाल दिया। २२। और तबअरः में और मस्सः में और कमरान लतावः में तुम ने परमेश्वर को कोपित किया॥ २३ । और उसी ढब से उस समय में जब परमेश्वर ने तुम्हें कादिशवरनौज से यह कह के भेजा कि चढ़ जाओ और उस दश के जा मैं ने तुम्हें दिया है अधिकारी हे। तब तुम परमेश्वर अपने ईश्वर की आज्ञा से फिर गये और तम उस पर विश्वास न लाये और उस के शब्द को न सुना ॥ २४॥ तिस दिन से मैं ने तुम्ह जाना तुम परमेश्वर से फिर गये हो ॥ २५ । सेा में परमेशार के प्रागं चालीस रात दिन पड़ा रहा क्योंकि परमेश्वर ने कहा था कि में इन्हें नाश करूंगर ॥ २६ । से २०1 तब