पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३७९

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१२ प की पन्तका रहेग। २३ । न ब परमेश्वर इन मब जातिगणा को म्हारे पांग से होक देगा और तुम जानिरण के जो बड़े वली और तुम से अधिक मामी हैं रधिकारी होणे । २४ । जिप्त जिस स्थान पर तुम्हारे पाणं का तलवा पड़ेगा से से तुम्हारा हो जायगा वन और रु बनाम से और नदो से फरान नदी से ले के अत्यंत सन्ट्र लो तुम्हारा सिवाना होगा। २५ । किमो की सामर्थ्य न होगी कि तुम्हारे आगे ठहर सके परमेश्वर तुम्हारा ईश्वर नम्ह रा भय और उन्ह रा डर समस्त देश में जिस पर तुम्हारा पैर पडगा डालेगा जैसा उस ने तुम से कहा है॥ २६ । देखो मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और साप घर देता हं॥ २७॥ श्राशीष याद तम परमेश्वर अपने ईश्वर की आज्ञायों को जो भाज में तुम्ह देता हूँ पालन करोमे ॥ २८ । और न प यदि तुम परमेअर अपने ई पर की प्राज्ञा पालन न करोगे परंतु टप्स मार्ग से फिर के जो आज मैं तुम्ह आज्ञा करना 'हं अरू और देवता का पीछा करोगे जिन्हें तुम ने नहीं जाग॥ २६ । और यों होगा कि जब परमेश्वर तेर। ईश्वर तुझ उस देश में जहां न अधिकारी होने को जाना है पहुंचाचे तो तु बाशीष को जरिजोम के पहाड़ पर रखयो और साप को बैवाल के पहाड़ पर। ३०। क्या वे यरन पार न ही उपौ मार्ग में जिधर सूर्य अस्त होता है कनानौ के देश में जा जिलजाल के सान्ने चौगान में रहते हैं और चामाने के लग है। ३१। क्यांकि तुम य रदन पार जाते हो जिप्त में उप देश के ज्ञा परमेश्वर तुम्हारा ईश्वर तुम्हें देता है अधिकारी हो और तुम उम के अधिकारो होगे और उस में बसे।गे। ३२। सोनम समस्त विधि द्वार बिवार जो आज मैं तुम्हारे प्रागे धरता हूं सोच रखियो। १२ बारहवां पर्च। वे विधि और बिघार हैं जिन्हें नम उम देश में जो परमेश्वर तुम्हारे पितरों का ई र तुम्हे अधिकार में देता है जब लो तुम एथियो पर जीते र हा उन्ह मा व मानियो। २ । नुम उग स्थानों को सर्वथा नाश कीमिया जहां उन जातिगणों ने जिन के तुम अधिकारी हायोगे अपने ये