पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३८

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उत्पत्ति [१७ पर्च कनान का मारा देश और मैं उन का ईश्वर हंगा॥ । फिर ईश्वर ने अबिरहाम से कहा कि तू और तेरे पीछे तेरा बंश उन की पीढ़ियों में मेरे नियम को मानें ॥ १० । सेो मेरा नियम जो मुसे और तुम से और तेरे पीछे रेबंश से है उसे मानिया यह है कि तुम में से हर एक बालक का खतनः किया जाय ॥ ११॥ और तुम अपने शरीर की खलड़ी काटो और बह मेरे और तुम्हारे मध्य में नियम का चिह्न होगा। ५२। और तुम्हारी पीढ़ियों में हर एक पाठ दिन के बालक का खतनः किया जाय जो घर में उत्पन्न होय अथवा जो किसी परदेशी से जो तेरे वंश का न हो दाम से मोल लिया जाय ॥ १३ । जो तेरे घर में उत्पन्न हुआ हो और जो तेरे दाम से मोल लिया गया हो अवश्य उस का खतनः किया जाय और मेरा नियम तुम्हारे माम में सर्पदा नियम के लिये होगा॥ १४ । और जा अखतनः बालक जिस की खलड़ी का खतनः न हुआ हो सो प्राणी अपने लोग से कट जाय कि उस ने मेरा नियम तोड़ा है।। १५ । फिर ईश्वर ने अबिरहाम से कहा तेरी पत्नी सरी जो है तू उसे सरी न कह परन्तु उस का नाम सरः रख ॥ १६ । और मैं उसे आशीष देऊंगा और मुझे एक वेटा उस्मे भी देऊंगा निश्चय में उसे आशीष देऊंगा और वुह जातिगण होगी और राजा लोग उससे होंगे। १७। तब अबिरहाम अधेि मुंह गिरा और हंसा और अपने मन में कहा क्या सौ बरस के व से लड़का उत्पन्न होगा और क्या सरःजा नब्बे बरम की है जनेगी । १८। फिर अबिरहाम ने ईश्वर से कहा कि हाय कि ममऐल तेरे आगे जीता रहे॥ १८। तब ईश्वर ने कहा कि तेरी पत्नी सरः तेरे लिये निश्चय एक बेटा जनेगी और तू उस का नाम इज़हाक रखना और मैं सदा नियम के लिये अपना नियम उस्मे और उस के पीछे उस के बंश से स्थिर करूंगा॥ २० । और इसमएल जो है मैं ने उस के विषय में तेरी सुनी है देख अब मैं ने उसे आशीष दिया और उसे फसमान करूंगा और उसे अत्यंत बढ़ाऊंगा उस्मे बारह अध्यक्ष उत्पन्न होंगे और उसे बड़ी मंडली बनाऊंगा॥ २१ । परन्तु इजहाक के साथ जिसे सरः तेरे लिये दूसरे बरस इसी ठहराये हुए समय में जनेगी मैं अपना नियम स्थिर करूंगा।। २२ । तब उसमे बात करने से रह गया और अबिरहाम के