पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३८६

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विवाद [१५ पर्व परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरे हाथ के समस्त कार्यों में जो तू करता है श्राशीष देवे॥ मन २५ पंदरहवां पद जान बरसों के पीछे तू छुटकारा टहरायो। २। और कुटकारे की रौनि यह है कि हर एक धनिक जो अपने परोसी को ऋण देना है सो उसे छोड़ देवे और अपने परोसौ से अथवा भाई से न लेवे दूस कारण कि यह परमेश्वर का कुरकारा कहाना है। ३। परदेशी से तू ले सके परंतु यदि तेरा कुछ तेरे भाई पर है तो उसे छोड़ दे। जिसने नुम्म कोई कंगाल न होवे क्योंकि परमेश्वर उम देश में जिसे परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरे अधिकार में देता है तुझे आशीष देगा॥ ५ ॥ यदि न केवल परमेश्वर अपने ईश्वर के शब्द को सुने और ध्यान से उन ममत आज्ञाओं पर चले जो आज मैं तुझे कहता हूँ॥ ६ नो परमेश्वर तेरा ईश्वर जैसा उम ने तुझ से प्रण किया है तझे आशीष दंगा और तू बहुत जातिगण को उधार देगा परंतु तू उधार न लेगा और दूबहुत से जातिगणे पर राज्य करेगा परंतु वे तुझ पर राज्य न करेंगे । ७। यदि तुम्हारे बीच तुम्हारे भाइयों में से तेरे किसो नगर में उस देश का जिसे परमेश्वर तेरा ईश्वर तुझे देता है कोई कंगाल हो तो उसे अपने मन को कठोर मत करिया और अपने कंगाल भाई की और से अपना हाथ न सोंचियो। छ। परंतु अवश्य उस की सहाय करियो परंतु उस्ने हाथ बंद मत कीजियो और निश्चय उस के आवश्यक के समान उसे उधार देना॥ है। सावधान हो कि तेरे दुष्ट मन में कोई बुरी चिंता न हो कि सातवां बरस तेरे छुटकारे का बरस पास है और तेरी अांख तेरे कंगाल भाई की और चुरो होये और तू उसे कुछ न देवे और घुह 'तुझ पर परमेश्वर के बाग विलाप करे और तेरे लिये पाप होवे ॥ १० । अवश्य उसे दौजिया और जब तू उसे दे वे तो तेरा मन उदास न होवे क्योंकि दूम कारण परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरे समस्त कार्यों में जिन में तू हाथ लगावे बढ़ती देगा। ११ । क्योंकि देश में से कंगाल न मिट गे इस निये मैं तुझे आज्ञा करता हूं कि अपने भाई के लिय जो