पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३९३

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कौ पुस्तक भागे। २८ पञ्च] ने कहो है न होवे अथवा पूरी न हो तो वह बात परमेश्वर ने नहीं कहो परंतु उस बागर ज्ञानी ने टिठाई से कहौ है तु उस्म मत डर ॥ १६ उन्नीसवां पर्च। व परमेश्वर तेरा ईम्वर उन जातिगणों को जिन का देश परमेश्वर तेरा ईश्वर तुझे देता है काट डाले और तू उन का अधिकारी होवे और उन के नगरों में और उन के घरों में बसे। तो तू अपने उस देश के मध्य में जिसे परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरे वश में करता है अपने लिये तीन नगर अलग करना। ३। तू अपने लिये एक मार्ग सिद्ध करमा और अपने देश के सिवानों को जो परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरे अधिकार में देता है तीन भाग करना जिसने हर एक घाती उधर ४। और घाती की व्यवस्था जो वहां भागे जिसने छह जीता रहे यह है जो कोई अपने परोसो को जो उमा भागे वैर न रखता था अजान में मार डाले। ५ । अथवा कोई मनुष्य अपने परोसी के साथ लकड़ी काटने को बन में जाय और कुल्हाड़ा हाथ में उठाचे कि लकड़ी काटे और कुल्हाड़ा बट से निकल जाय और उस के परोसी को एसा लगे कि वुह मर जाय तो बुह उन में से एक नगर में भाग के बचे ॥ कि मार्ग के दूर होने के कारण लोहू का प्रतिफल दायक अपने मन के काप से घातो का पीछा करे और उसे पकड़ लेवे और उसे मार डाले यद्यपि बुह मार डालने के योग्य नहीं क्योंकि बुह आगे से उस का डाह न रखता ७। इस लिये मैं तुझ अाज्ञा करके कहता हूं कि त अपने कारण तौन नगर अलग करना। ८। और यदि परमेश्वर नेरा ईश्वर तेरा सिवाना बढ़ावे जैसा उम ने तेरे पितरो से किरिया खाके कहा है और बुह समस्त दश तेरे पितरों को देने को बाचा किई तुझ द वे ॥ यदि तू इस समस्त प्राजाओं को पालन करे और उन्हें माने जो आज के दिन में तुझ आज्ञा करता हूँ और परमेश्वर अपने ईश्वर से प्रेम रखके मर्षदा उस के मार्ग पर चले तो तू इन तीन नगरों से अधिक अपने लिय तीन नगर बढ़ाना॥ १.। जिमने तेरे दश पर जिसे परमेश्वर तेरा ईबर तेरा अधिकार कर देता है निर्देष लोहू बहाया न जाय कि हत्या [ A. B. S.] था। 49