पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४१

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१८ पर्च] की पुस्तक । छोड़ेगा॥ २५ । दुष्ट के संग धर्मों को मारना ऐसी बात तुरमे परे होय और कि धर्मी को दुष्ट के समान करना तुस्से दूर होय क्या सारी पृथिवी का न्यायी यथार्थ न करेगा ॥ २६। तब परमेश्वर ने कहा यदि में मदूम नगर में पचास धर्मी पाऊं तो मैं उन के लिये सारे स्थान को छोड़ देगा॥ २७॥ फिर अबिरहाम ने उत्तर देके कहा कि देख मैं ने परमेश्वर के आगे बोलने में ढिठाई किई यद्यपि मैं धूल और राख हं। २८। यदि पचास धर्मियों से पांच घर हो तो क्या पांच के लिये सारे नगर को नाश करेगा तब उम ने कहा यदि मैं उस में पैंतालीस पाऊं तो उसे नाश न करूंगा। २६। फिर उस ने उसे कहा यदि चालीस वहां पाये जावें तब उस ने कहा मैं चालीस के कारण ऐमा न करूंगा॥ ३० । फिर उस ने कहा हाय कि परमेश्वर क्रुद्ध न होवे तो मैं कहूं यदि वहां नीस हो तब उस ने कहा यदि मै वहां तीस पाऊं तो एसा न करूंगा॥ ३१ । फिर उस ने कहा कि देख मैं ने प्रभ के आगे बोलने में ढिठाई किई यदि वीस ही वहां पाये जायें तब उस ने कहा में बीस के कारण उसे नाश न करूंगा॥ ३२। फिर उस ने कहा हाय कि परमेश्वर क्रुध्न न होवे तो मैं अब की बार फिर कहं यदि वहां दम ही पाये जावें तब उम ने कहा मैं दस के कारण उसे नाश न करूंगा। ३३। तब परमेश्वर अबिरहाम से बात चौत समाप्त करके चला गया और अबिरहाम अपने स्थान को फिरा । १६ उन्नीसवां पर्य। फर सांझ को दो टूत मटूम में आये और नत स्टूम के फाटक पर बैठा था उन्हें देखकर लूत उन से भेंट करने को गया और भूमि लेो दंडवत किई ।। २। और कहा कि हे खामियो अपने दास के घर की और चलिये और रात भर ठहरिये और चरण धोइये और तड़के उठके अपने मार्ग लीजिये तब उन्हां ने कहा कि नहीं परन्तु हम रात भर मड़क में रहेंगे। ३। पर जब उस ने उन्हें बहुत दबाया तब वे उस को और फिर और उम के घर में आये तय उम ने उन के लिये जेवनार किया और अखमौरी रोटी उन के लिये पकाई और उन्हों ने खाई ।।