पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४२

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३२ उत्पनि [१ पई ४। उन के लेटने से आगे सदूम के नगर के मनुष्यों ने क्या तरुण क्या बूढ़े मब लोगों ने चारों ओर से आके उस घर को वेरा ॥ ५ । और लूत को पुकारके कहा कि जो पुरुष तेरे यहाँ आज रात आये हैं से कहां हैं हमारे पाम उन्हें बाहर ला जिमने हम उन से संगम करें । ६। और लत द्वार से उन पाम बाहर गया और अपने पीके द्वार बंद किया। ७। और कहा कि हे भाइयो ऐसी दुष्टता न करना । ८ ! देखो मेरी दो बेटियां हैं जो पुरुष से अज्ञान हैं कहा तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर साऊं और जो तुम्हारी दृष्टि में भना लगे से उन से करो केवल उन मनुष्यों से कुछ न करो क्योंकि वे इस लिये मेरी छत की काया तले आये हैं। ह। उन्हां ने कहा कि हट जा कहा कि यह एक जन हम्में टिकने को आया से अब न्यायी होने चाहता है अब हम तेरे माथ उन से अधिक बुराई करेंगे तब बे उस पुरुष पर अर्थात् लूत पर इल्लर कर के आये और द्वार तोड़ने को झपटे ॥ १. । परन्तु उन पुरुषों ने अपने हाथ बढ़ाके लूत को घर में खींच लिया औरर दार बंद किया ॥ ११। और क्या छोटे क्या बड़े सारे मनुष्यों को जो घर के द्वार पर थे अंधापन से मारा यहां ले कि वे द्वार ढूंढते ढूंढने थक गये ॥ १२ । तब उन पुरुषों ने लत से कहा कि तेरा कोई और यहां है जवाई अथवा तेरे बेटे अथवा तेरी बेटियां जो कोई इस नगर में तेरा है उन्हें लेकर इम स्थान से निकल जा। १३ । कयोकि हम इस स्थान का नाश करेंगे इम लिये कि दून का चिल्लाना परमेश्वर के आगे बड़ा है और परमेश्वर ने हमें इसे नाश करने को भेजा है। १४ । तब लून निकला और अपने जबाइयों से जिन्हों से उस की बेटियां ब्याही थों बोला और कहा कि उठो इस स्थान से निकला क्योंकि परमेश्वर इस नगर को नष्ट करता है परन्तु वुह अपने जवांइयों के आगे जैसा कोई ठठेलू दिखाई दिया। ५५ । और जब बिहान हुआ दूतों ने नूत को शीघ्र करवाके कहा कि उठ अपनी पत्नी और अपनी दो बेटियां जो यहां हैं ले जा न हो कि तु इस नगर के दड में भस्म हो जाय ॥ १६ । और जब लो वुह बिलंब करता था उन पुरुषों ने उस का और उम की पत्नी का और उस की दोनों बेटियों का हाथ पकड़ा क्योंकि परमेश्वर