पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४२२

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(३२ पर्व बिवाद पहिच नते थे वे देवना जो घाड़े दिनों से प्रगट हुए जिन से तुम्हारे पितर न डरते थे॥ १८। तू उस पहाड़ से अचेत है जिस ने तुझे उत्पन्न किया और उस ईश्वर को भूल गया जिस ने तेरा डाल किया । १६ । और जब परमेश्वर ने देखा उस ने धिन किया इस कारण कि उस के बेटा बेटी ने उसे रिस दिलाया। २.। और उस ने कहा कि मैं उन से अपना मुंह छिपाऊंगा जिसने में उन का अंत देखं क्योंकि वे टेही पीढ़ी हैं और ऐसे लड़के जिन में विश्वास नहीं। २१। उन्होंने अनीश्वर से मझे ज्वलन दिलाया उन्हों ने व्यों से मुझे रिम दिलाया से मैं भी उन्हें अलोग से झल दिलाऊंगा और एक मूर्ख जाति से उन्हें रिम दिलाऊंगा। २२ । क्योंकि मेरेरिस में आग भड़को है और अन्य त नरक ले जली है और पृथिवी को उम की बढ़ती समेत भसा कर गई और पहाड़ों की नेय को जला दिया है। २३ । मैं उन पर विपत्ति की ढेर करूंगा और उन पर अपने वाणों को घटाऊंगा॥२४। बेभख से जल जायेंगे और भस्मक तपन और कड़वे विनाश से भक्षण किये जायेंगे मैं पशुओं के दांतों को और एथिवी के विषधर सी को छोडूंगा ॥ २५ । बाहर में तलवार और कोठरियों से भय तरुण मनुष्य को और कुआंरी को भी दूध पीवक को भी पुरनियां सहित नाश करेंगे॥ २६ । मैं ने कहा कि मैं उन्हें कोने कोने छिन्न भिन्न करना मैं मनुष्यों में से उस का नाम मिटा देता॥ २७॥ यदि मैं शत्रु के क्रोध पर दृष्टि न करता न हो कि उन के बैरी वमंड करें और न हो कि वे कहें कि हमारा ही हाथ प्रबल हुया परमेश्वर ने ये सब नहीं किये। मन्त्र रहित जाति हैं और उन में दुधि नहीं ॥ २६ । हाय कि वे बुद्धि मान होके इसे समझते और अपने अन्नकाल की चिन्ता करते॥ ३॥ ना कैसे एक सहस्र को खेदना और दो दस सहन को भगाते यदि उन का पहाड़ उन्हें न वेंच डाले होता और परमेश्वर उन्हें बंद किये न होता ॥ ३१ । कांकि उन का पहाड़ हमारे पहाड़ के समान नहीं हां हमारे बैरी आप न्यायी हैं । ३२ । क्योंकि उन का दाख मटूम में के और अमरः के खेतों का है उन के अङ्गर पित्त के अंगूर हैं उन के गुच्छे कड़वे हैं ॥ ३३ । उन की मदिरा नागों का विष है और साली २८। क्योंकि वे के दाख