पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४३१

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को पुस्तक बुह भीत ही २ पर्चा १२। से अब मुझ से परमेश्वर की किरिया खाओ जैसा मैं ने तुम पर अनुग्रह किया वैसा ही तुम भी मेरे पिता के घराने पर अनुयह करियो और मुझे एक मञ्चा चिङ्ग दीजिये ॥ १३। कि मेरे पिता और मेरी माता को और मेरे भाइयों और बहिनों को और सब जो उन का है बचाओ और हमारे प्राण को मृत्यु से कुड़ा॥ १४। तब उन मनुष्यों ने उसे उत्तर दिया कि मृत्यु के विषय में हमारे प्राण तुम्हारे प्राण के संती यदि तू हमारा यह कार्य न उच्चारे और ऐसा होगा कि जब परमेश्वर दूम देश को हमें देगा तब हम तेरे साथ सचाई से और अनुग्रह से व्यवहार करेंगे। २५ । तब उस ने उन्हें डोरी से खिड़की में से उतार दिया क्योंकि उस का घर नगर की भौत पर था और पर रहती थी॥ १६। चार उम ने उन्हें कहा कि पहाड़ पर चढ़ जाओ न हो कि खोजी तुम्हें मिलें से तुम तीन दिन लो किपे रहा जब लो कि खोजी फिर आत्रे उस के पी तुम अपने मार्ग लीजियो। १७। तब उन मनुष्यों ने उसे कहा कि इस किरिया से जो तू ने हम से लिई है हम निर्दोषौ होंगे॥ १८। देख जब हम इस देश में आगे तब यह लाल सूत को डारौ इस खिड़को से वांधियो जिसे तू ने हमें नीचे उतार दिया और अपने पिता और अपनी माता और अपने भाइयों को और अपने पिता के मारे घराने को अपने यहां बटोरियो। १६ । और ऐसा होगा कि जो कोई तेरे घर के द्वारों से बाहर जायगा जस का लोहू उस के सिर पर होगा और हम निषि होंगे और जो कोई तेरे साथ घर में होगा यदि किसी का हाथ उस पर पड़े तो उस का लोह हमारे सिर पर। २.। और यदि न हमारा यह कार्य उदारे तो हम उस किरिया से जोत ने हग से लिई अलग हांगे ॥ २१॥ ौर वह बोली जैसा तम ने कहा वैसा ही हो से उन्हें बिदा किया और वे चले गये तब उस ने बुह लाल सूत की डोरी खिड़की पर बांधी।। २२। और वे वहां से चलके तीन दिन ला पहाड़ पर रहे जबलों कि खोजी लौट आये और उन खोजियों ने उन्हें समस्त मार्ग में ढूंढा छौर न पाया ॥ २३। तब वे दोनों पुरुष फिरे और पहाड़ से उतरे और पार हुर और नून के बेटे यहसून पास आये और जो जो कुछ उन पर बीता था सब उसी कहा। २४ । और