पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४५

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२० ८। पर्च की पुस्तक। मन की मच्चाई से ऐमा किया है क्योंकि मैं ने भी तुझे गेरे बिरुव पाप करने से रोका इस लिये मैं ने तुझे उसे कूने न दिया ॥ ७। सो अब उस पुरुष को उस की पत्नी फर दे क्योंकि वुह भविष्यहना है और बुह तेरे लिये प्रार्थना करेगा और तू जौता रहेगा परन्तु यदि तू उसे फेर न देगा तो यह जान कि तू और नेरे सारे जन निश्चय मरेंगे । तब अबिमलिक ने बिहान को तड़के उठकर अपने सारे सेवकों को बुलाया और ये सारी बातें उन्हें सुनाई तब वे बहुत डर गये। । नव अबिमलिक ने अविरहाम को बुलाया और उसे कहा कि तू ने हम से क्या किया है और मैं ने तेरा क्या अपराध किया कि तू मुझ पर और मेरे राज्य पर एक बड़ा पाप लाया है तू ने मुझे अनुचित काम किये॥ १.। फिर अबिमलिक ने अबिरहाम से कहा कि तू ने क्या देखा जा तू ने यह काम किया है । ११ । अबिरहाम बाला इस कारण कि मैं ने समझा कि निश्चय ईश्वर का भय इस स्थान में नहीं है और मेरी पत्नी के लिये वे मुझे मार डालेंगे। १२ । और तथापि बुह मेरी बहिन निश्चय है वुह मेरे पिता की पुत्रौ है परन्तु मेरी माता की पुत्री नहीं से मेरी पत्नी हुई ॥ १३ । और जब ईश्वर ने मेरे पिता के घर से मुझे भमाया तो यूं हुआ कि मैं ने उसे कहा कि मुझ पर तू यही अनुग्रह कर कि जहां कहीं जिधर हम जायें मेरे विषय में कह कि बुह मेरा भाई है। १४। तब अबिमलिक ने भेड़ वकरौ गाय बैल और दाम दासियां लेकर अबिरहाम को दिया और उस की पत्नी सरः को भी उसे फेर दिया। १५ । फिर अविमलिक ने कहा कि देख मेरा देश तेरे आगे है जहां तेरा मन भावे तहां रह ॥ १६। और उस ने सरः से कहा कि देख मैं ने तेरे भाई को महस्र टुकड़ा चांदी दिई है देख तेरे सारे संगियों के लिये और मां के लिये वुह तेरी आंखों की ग्रोट होगी सेो वुह यों दपटी गई॥ १७। तब अचिरहाम ने ईश्वर की प्रार्थना किई और ईश्वर ने अयिमलिक और उस की पत्नी और उस की दासियों को चंगा किया और वे जन्ने लगौं। १८। क्योंकि परमेश्वर ने अबिरहाम की पत्नी मरः के लिये अविमलिक की सारी को खां को बंद कर दिया था।