पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३० । से यह मून के कहा कि निश्चय वुह अपने ठंढे स्थान में चैन करता है। २५ । और वे ठहरते ठहरते लज्जित हुए और देखा कि उस ने बैठक के द्वार को नहीं खोला इस लिये उन्हों ने कंजी लेके खोला और क्या देखते हैं कि उन का प्रभु भूमि पर भरा पड़ा है। २६ । पर उन के ठहरते ठहरने अहूद भाम निकला और मर्ति स्थान से पार हुश्रा और सौरात में जाके बचा। २७। और आते ही यों हुआ कि उस ने पहाड़ फरायम पर नरसिंगा फूंका तब इसराएल के संतान उस के साथ पहाड़ पर से उतरे और वह उन के आगे आगे ग्रा। २। और उस ने उन्हें कहा कि मेरे पौंछ पौछे हो लेगा क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे शत्रु माअबियों को तुम्हारे हाथ में कर दिया सो वे उस के पीछे पोछे उतर आये और यरदन के घाटों को जो मेअिब को चार थे लेलिया और एक को भी पार उतरने न दिया। २८। उसी समय उन्हों ने माअब के दस सहस्र मनुष्य के अटकस जो सब पुष्ट और साहसी थे घात किये उन में से एक भी न बचा । । उस दिन अब इसराएल के वश में हुआ और देश ने अस्मौ बरन ले चैन पाया ॥ ३१। उस के पौछे अनात का बेटा शमजर हुआ जिसने सोफिलिमतियों को देस की धार से मारा और उस ने भी इसराएल को कूड़ाया ४ चौथा पब्बै । पर जब अर्द मर गया तब इसराएल के संतान ने फिर परमेश्वर की दृष्टि में बुराई किई ॥ २ । और परमेश्वर ने उन्हें कनान के राजा यौन के हाथ में बेचा जो हसूर में राज्य करता था और उस की सेना के अध्यक्ष का नाम सौसरा था जो हरमत में रहता था। ३। तब दूसराएल के संतान परमेश्वर के आगे चिलाये क्योंकि उस पास लोहे के नव सौ रथ थे और उस ने बीस बरस लो इभराएल के संतान को कठोर ता से मनाया। ४ । चार सपोदान को पत्नी बूरः अागमनानिनी उस समय में दूसराएल का न्याय करती थी॥ ५। और पहाड़ इफरायन में रामः और बैतऐल के मध्य बरः के खजर तले रहती थी और दूसराएल के संतान उस पाम न्याय के लिये चढ़ अाने थे॥ ६। तब उस ने काहिम जी