पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५१३

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मन्हा से १७। फिर १३ पर्छ पुस्तक। ५०५ श्राके उसे कहा कि तु वही पुरुष है जिम ने इस स्त्री से बात किई और उस ने कहा कि मैं हूं ॥ १२ । तब मन हा ने कहा कि जैसे तू ने कहा वैसे ही होवे लड़के की कौन सौ रीति अथवा वुह क्या करेगा॥ १३ । तब परमेश्वर के दूत ने मनूहा से कहा कि सब जो मैं ने स्त्री से कहा है वुह चौकस रहे ॥ १४ । बुह दाख में कर कुछ न खाय और मदिरा और कोई अमल न पीये चौर अपवित्र बसु न खाय सब जो मैं ने उसे आज्ञा किई पालन करे॥ १५ । और मनहा ने परमेश्वर के ट्रत को कहा कि तनिक अाप ठहर जाइये कि हम श्राप के आगे एक मेम्ना सिद्ध करें॥१६। परंतु परमेश्वर के दूत ने कहा कि यद्यपि तू मुझे रोके तथापि मैं तेरी रोटी न खाऊंगा और यदि नू होम की भेंट चढ़ावे तो तझ उचित है कि परमेश्वर के लिये चहरवे क्योंकि मनूहा न जानता था कि वुह परमेश्वर का दूत है । मनूहा ने परमेश्वर के दूत से कहा कि श्राप का नाम क्या जिसमें जब आप का कहा पूरा होवे हम श्राप की प्रतिष्ठा करें॥ १८। और परमेश्वर के टून ने उसे कहा कि तू मेरा नाम क्यों पछता है कि वुह अाश्चर्यित ॥ १९ । तब मनूहा ने एक मेस्ना भोजन को भेंट के कारण परमेश्वर के लिए एक चटान पर चढ़ाया और उस ने श्राश्चर्यित रीति किई और मनाहा और उसकी स्त्रो देख रहे थे ॥ २० । क्योंकि ऐमा हुआ कि जब बेदी पर से खर्ग को और लार उठी तब परमेश्वर का टूत लौर में हो के बेदी पर से खर्ग को चना गया और मन हा और उम को स्त्री ने देखा और मुंह के बल भूमि पर गिरे॥ २१ । परंतु परमेश्वर का दूत मनूहा को और उम की स्त्री को फेर दिखाई न दिया नब मनू हा ने जाना कि वुह परमेश्वर का दूत था । २२। और ममूहा ने अपनी पत्नी से कहा कि हम अब निश्चय मर जायंगे क्योंकि हम ने ईश्वर को देखा ॥ २३ । परंतु उस को पत्नी ने उसे कहा कि यदि पर- मेश्वर की इच्छा हमें मारने को होती तो वह होम की भट और में जन का भेंट हमारे हाथों से याद्य न करता और हमें यह सब न दिखाता और इम समय के समान हमें ये बातें न कहता। २४ । और बुद्ध स्त्री बेटर जनी और उम का नाम शम्मून रकवा वह लड़का बढ़ा और परमेपर ने उसे आशीष दिई॥ २५ । और परमेश्वर का श्रात्मा दान की कावमी सुर और इस्तान के बीच उसे उभाड़ने लगा। A. B. 9.) 61