पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५१६

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(१५ पर्ब ४। तब न्यायियो कि मैं अपनी पत्नी पास कोठरी में जाऊंगा परंत उस के पिता ने उसे जाने न दिया॥ २ । और उस के पिता ने कहा कि मुझे निश्चय हुआ कि तू उस्मे बैर रखता था इम लिये मैं ने उसे तेरे संगी को दिया और उस की नहरी बहिन उसमे क्या अति सुंदरी नहीं से उस की संतो इसे ले। ३। भब शम्सून ने उन के विषय में कहा कि अब मैं फिलिमतियों से निर्दोष होऊंगा यद्यपि मैं उन की हानि और बुराई करूं ॥ शम्मून ने जाके तीन सौ लोमड़ियां पकड़ी और दो दो की पूंछ एक साथ बांधी और पलीता लिया और पूंछ बांधके एक एक पलीता बीच में बांधा। ५ । और पनौतों को बार के उन्हें फिलिसतियों के खड़े खेतों में छोड़ दिया और फलों से लेके खड़े खेत लो और दाख के बाटिकों को और जलपाईको जला दिया ।। ६। तब फिलिमतियों ने कहा कि यह किम ने किया है और चे बाले कि निमनी के जंवाई शरमन ने इस लिये कि उस ने उस की पत्नी को लेके उस के मंगी को दिया तब फिलमती चढ़ आये और उसे और उस के पिता को आग से जला दिया । ७। तब शम्सून ने उन्हें कहा कि यद्यपि तुम ने ऐमा किया है तथापि मैं से प्रतिफल लेऊंगा नब पीक चैन कहंगा॥ ८। और उस ने उन्हें जांध और कना से मार मारके बड़ा नाश किया और फिर जाके ऐताम पर्वत पर बैठ गया। ८। तब फिलिसती चढ़ गये और यहूदाह में डेरा किया और ल ही में फैल गये । १०। और यहूदाह के मनुष्यों ने से कहा कि तुम हम पर क्यों चढ़ आये हे। वे बेग्ले कि शम्सून के बांधने को कि जैमा उस ने हम से किया हम उरम करें। ११। तब यहूदाह के तीन महस मनुथ्य ऐनाम पबैत की चोटी पर गये और शम्सून को कहा कि क्या नू नहीं जानता है कि फिलिमतो हम पर प्रभुता करने हैं सो त ने हम से यह क्या किया है और उस ने उन्हें कहा कि जैसा उन्हा ने मुझ से किया मैं ने उन से किया ॥ १२। तब उन्हों ने उसे कहा कि अब हम आये हैं कि तुझे बांध के फिलिसतियों के हाथ में सौंप देवें और शासन ने उन्हें कहा कि मुझ से किरिया खाओ कि हम आप नझे न मारेंगे। १३ । पर उन्हों ने उसे कहा कि नहीं परंतु हम तुझे दृढ़ता उम